इंजी. वीरबल सिंह
भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता: अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है। मैं यह बात बड़े गर्व के साथ कह सकता हूं कि इसी तथ्य को अगर आप लोकतंत्र में लागू तो कर रहे हैं लेकिन आत्मसात नहीं कर रहे हैं । हर क्षेत्र में नारी अब पुरुषों की तुलना में कई कदम आगे हैं फिर चाहे शिक्षा, व्यापार ,नौकरी या फिर राजनीति ही क्यों न हो । आज के वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो नारियां पायलेट बनकर आसमां की बुलंदियों को छू रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ रूढ़िवादी विचारधारा के विपरीत पिता की अंतिम यात्रा को कंधा देकर शमशान तक पहुँचकर पिता को अंतिम यात्रा के लिए भी विदा कर रही हैं । राजनीतिक दलों के मंचों से महिलाओं के हित में लंबी लंबी बातें कही जाती हैं और सरकारें उनके सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, नौकरी से लेकर लोकतंत्र में हिस्सेदारी के लिए आरक्षण तय कर रही हैं ।
आज के समय में कई राज्यों में पचास फीसदी जनप्रतिनिधियों में महिला ही काबिज है, पंच-सरपंच से लेकर जिला, जनपद, नगरीय निकाय और विधानसभा, लोकसभा से होते हुए राष्ट्रपति भवन तक नारी शक्ति का वर्चस्व है । इतर इन सबके भले ही बड़ी संख्या में नारी शक्ति जनता से चुनकर जनप्रतिनिधियों की श्रेणी में शामिल हो गई हैं लेकिन जमीनी हकीकत में नारी जनप्रतिनिधि बनने के बाद भी घूँघट और चौका चूल्हे तक सीमित है, चुनावी पोस्टर में हाथ जोड़े लगी फ़ोटो आज भी अपने ही पति,पुत्र से सशक्त होने की गुहार लगा रही हैं । चुनाव जीतने के बाद सम्मान जनप्रतिनिधि का होता है लेकिन महिला जनप्रतिनिधि की जगह उनके प्रतिनिधित्व के तौर पर पुरूष वर्ग जबरन फूल मालाओं से जबरन जिम्मेदारी के बोझ तले दबे जा रहे और महिलाएं घर की चारदीवारी में घुट घुट कर जीवन जी रही हैं । अक्सर देखा तो यहाँ तक भी गया है कि महिला जनप्रतिनिधियों की जगह उनके पति शपथ ग्रहण कर रहे हैं, अब जब जीत ही गए हैं तो कुर्सी पर खादी कुर्ता पहनकर पुरुष ही अधिकारियों के साथ बैठकर चाय की चुस्की के साथ ग्राम, नगर के विकास की ठिठोली कर रहे हैं । यदा कदा महिला जनप्रतिनिधियों को मंच मिल भी जाता है तो वो मंच पर भी रूढ़िवादी विचारधारा के बंधन में बंधी संकुचित सी घूँघट की आड़ में मंच पर भी घुटन महसूस करती दिख जाती है । जो महिलाएं खुलकर जनता के बीच पहुँचकर जन विकास की बात करती है तो समाज के द्वारा उन महिलाओं के विचारों को परिवार की मान मर्यादा के विपरीत मानकर अनेकों अनर्गल विचार समाज के बीच पनपने लगते हैं । केवल हिस्सेदारी से सशक्तिकरण नहीं होगा, समाज के बीच महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो उन्हें आजाद करने की आवश्यकता है, उनको अपने अधिकारों का उपयोग करने की स्वतंत्रता देने की आवश्यकता है, आप साथ रहिए लेकिन सम्बल और भरोसा बनकर, यकीन मानिए वो पारंगत है युध्द कौशल में, वुद्धिमता में , राजनैतिक समझ में, वो विकास करने को आतुर हैं समाज का, देश का लेकिन उससे पहले आवश्यकता है उन्हें अपने ही परिवार से , रूढ़िवादी विचारों से और आवश्यकता है मुक्त होने की परंपरागत विचारों से , निश्चित ही महिलाएं सशक्त होंगी और देश मे महिला सशक्तिकरण का सपना भी साकार होगा ।
लेखक वेबपोर्टल के संपादक हैं