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चुनाव में लाड़ली बहना योजना लेकिन लाड़ली बहनों को टिकिट ?

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भारतीय जनता पार्टी किसी भी तरह का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है तभी तो उसने सभी दलों से पहले 39 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है । भारतीय जनता पार्टी 2018 की तरह कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहती इसीलिए वह फूंक फूंककर सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर आगे कदम बढ़ा रही है । लगातार सक्रिय भूमिका में रहकर जनता को खुद से जोड़ने का प्रयास कर रही है तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना को न केवल शुरुआत किया है बल्कि उसका क्रियान्वयन भी इतना तेजी से किया कि इससे पहले इस प्रकार की कोई योजना अस्तित्व में नहीं आई ।लाडली बहना योजना के लिए पूरी सरकारी मशीनरी का प्रयोग प्रचार-प्रसार में लगा दिया गया । जब-जब लाडली बहना योजना की किस्त का वितरण होता है मुख्यमंत्री किसी एक जिले में जाकर एक बड़ा इवेंट आयोजित करते हैं ताकि वह जनता से संवाद कर सकें । इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान अब लाडली बहना योजना को सिर्फ ₹1000 महीने की बात देने की नहीं करते हैं बल्कि वह कहते हैं कि अब मैं ₹3000 प्रति महीने दूंगा यह राशि कब बहना के खाते में आएगी यह तो खुद शिवराज सिंह चौहान जानते होंगे लेकिन लाडली बहना योजना का लॉलीपॉप प्रदेश की महिलाओं को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सौंप दिया है जिसके बदले में 2023 में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान करने का वादा बहनाओं से ले रहे हैं ।

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महिला सशक्तिकरण और राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ावा देने की बात है चुनावी मंचों से और राजनीतिक मंचों से राजनीतिक मंचों से तो करते हैं । भारतीय जनता पार्टी महिलाओं को लेकर कई योजनाएं चल रही है तो महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा कर अपने पीठ खुद ही थापा लेती है लेकिन हकीकत यह है कि अभी कुछ ही महीना में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके लिए पार्टी में टिकट वितरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन हकीकत देखा जाए तो कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर चुनिंदा महिलाएं कार्यकर्ताएं लंबे समय से जमीन स्तर पर भारतीय जनता पार्टी का झंडा थाम कर पार्टी का प्रचार प्रसार कर रही हैं और तन मन धन से मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित करने में अपना पसीना बहा रही हैं लेकिन जब बात चुनाव में टिकट की आती है तो वही मुख्यमंत्री और वहीं भारतीय जनता पार्टी का आला कमान जो मंचों से महिला सशक्तिकरण के वादे और दावे करता है पोल खोलता हुआ दिखाई देता है क्योंकि टिकट के समय कभी जातिगत आंकड़े तो कभी दल बदल की राजनीति में सौदा किया नेता टिकट को झपट कर ले जाते हैं और जो मूल कार्यकर्ता अपना पसीना बहा कर अपनी राजनीतिक बिसात बिछा रहा होता है वह ठगा महसूस करने लगता है । यानी साफ तौर पर देखा जाए तो महिलाओं के लिए चाहे वह लाडली बहन योजना बनाएं या फिर उज्ज्वला योजना लेकिन वास्तविक तौर पर यदि महिलाओं का सशक्तिकरण होगा तो महिला की सहभागिता आगामी विधानसभा चुनाव में करने से होगी ना के चुनावी मंचों से दावे और वादे करने से ।

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