महाराज के साथ सिर्फ प्रभु, गोविंद और तुलसी

विशेष खबर : राजनीति में लोग जनसेवा का वास्ता देकर तो आते हैं लेकिन धनमेवा में व्यस्त और मस्त हो जाते हैं । एक कहावत तो आपने खूब सुनी होगी कि जब अंगूर लोमड़ी की पहुंच से बाहर हो जाते हैं तो वो उन्हें खट्टे ही कहती है, ऐसा ही कुछ भारतीय राजनीति में होता है जब पार्टी में पद और पार्टी को सत्ता मिलती है तब तक पार्टी माँ समान होती है और जब पार्टी किसी और को मौका दे दे,या फिर जनता नकार दे तो फिर वही पार्टी देशविरोधी दिखाई देने लगती है ।
ऐसा ही कुछ हुआ मध्यप्रदेश के ग्वालियर महाराज के साथ, महाराज ने कमल दल को अपना लिया और कमल दल के शीर्ष नेतृत्व ने अर्श से फर्श पर आ चूके महाराज को एक बार फिर हवाई यात्रा करा दी, महाराज भी वक़्त की नजाकत को समझ गए और महाराज से भाई साहब बनने में देर नहीं की । शीर्ष नेतृत्व ने खुद को भले ही मजबूत बनाने की कोशिश की हो लेकिन सूबे के नेता मजबूर दिखाई देते हैं तभी तो दल में मिलने के बाद महाराज से उनके दिल नहीं मिल रहे हैं और यही कारण है कि आए दिन सूबे के दौरे पर रहने वाले महाराज के साथ अक्सर उनके सिपसलाहकर स्वास्थ्य मंत्री प्रभु, जल संसाधन मंत्री तुलसी और परिवहन मंत्री गोविंद ही साथ दिखाई देते हैं अन्य कमल दलीय मंत्रीगण नहीं । तुलसी तो महाराज के गृह क्षेत्र के प्रभारी भी हैं ऐसे में दरबार में हाजिरी जरूरी है लेकिन सवाल खड़ा होता है कि क्या 2023 में महाराज के दरबारियों का झंडा उपचुनाव की तरह हाथ में लेकर सियासत की जंग जीतने में युद्ध लड़ेंगे या फिर अपने राजनैतिक भविष्य की रक्षा के लिए भितरघात करेंगे ।

Subscribe to my channel



