निकाय चुनाव नजदीक, दावेदारों को सरकार पर अब भी भरोसा नहीं

राजनीतिक : सूबे में लंबे समय बाद ही सही नगरीय निकाय चुनाव की आहट राजनीतिक गलियारों से सुनाई दे रही है, अभी हाल ही में पंचायत चुनाव को लेकर चुनाव आयोग द्वारा तैयारी को लेकर बैठक ली गई जिसके तहत अनुमान है कि मई के आखिरी और जून तक आचार संहिता लागू हो सकती है । सब कुछ ठीक रहा फिर कोई दांव पेंच न्यायालय में नहीं फंसता है तो जून अंत तक सूबे में निकाय और पंचायत चुनाव सम्पन्न हो सकते हैं । पंचायत चुनाव के साथ में ही नगरीय निकाय चुनाव भी कराए जाएँगे, प्रशासन जिसकी तैयारी में जुट गया है । लेकिन पार्षद से लेकर अध्यक्ष और महापौर पद की दावेदारी करने वाले क्षेत्र से नदारद हैं, बीते साल चुनावी सुगबुगाहट के साथ कोरोना काल मे दावेदार जनता के बीच पहुँचकर सेवा करने में जुट गए थे, मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर दावेदारों की बहार सी आ गई थी, हर कोई अपने आप को जनसेवक साबित करने की होड़ में लगे थे लेकिन चुनाव टलते ही गुमशुदा हो गए । शायद उन दावेदारों को अब भी सरकार की मंशा पर भरोसा नहीं है कि चुनाव होंगे,उन्हें लगता है कि सरकार कोई दांव पेंच फंसाकर एक बार फिर चुनाव टल सकते हैं । ऐसे में जनता के बीच पहुँचकर पैसे और समय की बर्बादी है, और बार बार जनता के बीच जाना फिर चुनाव निरस्त होने के कारण घर बैठ जाने से जनता के बीच हँसी के पात्र बनते हैं, अब चुनाव की आधिकारिक घोषणा के बाद ही कोई फैसला दावेदारों के द्वारा लिया जाएगा,हालांकि पूर्व में निर्देशन पत्र दाखिल करने के बाद भी चुनाव निरस्त हो गए थे ।
ज्ञात हो कि अब केवल पार्षद और अध्यक्ष पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होंगे, अध्यक्ष और महापौर भी इस बार प्रत्यक्ष रूप से ही चुने जायेंगे ऐसे में पार्षद के लिए जो दावेदारी पेश करने वालों सहित अध्यक्ष पद के दावेदार भी एक बार फिर मैदान में किसी न किसी प्रकल्प के माध्यम से जनता के बीच दिखाई दे सकते हैं , हालांकि अभी तो वे पूरी तरह से लापता हैं । दावेदारों के सामने अब एक बड़ी समस्या ये भी है कि यदि जानकारी के अनुसार जून में ही चुनाव हुए तो उन्हें न केवल जनता के बीच पैठ बनाना है बल्कि टिकिट के लिए अपनी पार्टी मुख्यालय पर हाजिरी लगाने के साथ ही अपने राजनीतिक आका की परिक्रमा के लिए भी समय निकालना होगा । अब कौन किस दल से अपनी दावेदारी पेश करेगा ये तो समय आने पर ही पता चलेगा क्योंकि चुनावी समय में अक्सर दलबदल की बयार आती है जिसमें अनेकों लोग अपने सिद्धांतों से समझौता कर विरोधी दल की नाव पर सवार हो जाते हैं, जो कुछ भी हो लेकिन फिलहाल तो नगरीय निकाय नजदीक हैं और दावेदारों को जनता के बीच पहुंचने की जरूरत है ।

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