राजनीति अब जनसेवा का नहीं अभिनय का मंच बन गया, क्यों ..?

आजादी के बाद भारत ही नहीं अपितु कई देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने जन्म लिया तब लोकतंत्र को परिभाषित किया गया था कि “जनता का , जनता के द्वारा ,जनता के लिए” जो व्यवस्था है वही लोकतंत्र है लेकिन समय बीतने के साथ ही ये परिभाषा भी बदल गई । राजनीति कभी जनसेवा का मंच हुआ करता था अब अभिनय का मंच बनता जा रहा है । जनप्रतिनिधि मंचों से लेकर गली मोहल्ले, चौराहों पर लोक लुभावन अभिनय करते देखे जाते हैं । सूबे के मुखिया मंच पर घुटने टेकते हुए नजर आते हैं, जनता जनप्रतिनिधियों की भगवान है और भगवान के सामने नतमस्तक हो जाना को गलत बात नहीं है लेकिन भरे मंच पर घुटने टेकना विफल शासक की ओर संकेत करता है ।
राजनीति में चाटूकारिता चरम पर है, छुटभैये नेताओं से लेकर विधायक और मंन्त्री तक चाटूकारिता की हदें इस कदर पार कर बैठ रहे हैं कि वे अपनी संविधानिक गरिमा को भी तार कर रहे हैं । बीते दिनों में मध्यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों को सड़क के किनारे रेहड़ी वालों से लेकर ग्रामीणों के बीच अपने अभिनय से मदारियों सरी की भीड़ एकत्र करते भी देखा गया है । तत्कालीन कांग्रेस सरकार की एक मंत्राणी के पारिवारिक नृत्य को विपक्ष कमल दल ने ऐसा प्रस्तुत किया कि बस लगा कि मंत्राणी महोदया जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि कोई नृत्यांगना हो लेकिन जब अब कमल दल की सरकार है तब मंत्रीगण जनता के विकास के लिए कुछ खास नहीं कर पाए तो अब अभिनय करते देखे जा रहे हैं, अपनी ऊर्जा को अपनी लाचारी बनाकर नंगे पैर सड़क पर घूमने से जनता का विकास नहीं होगा और न हीं रातभर अस्पताल में मरीजों के पैर दाबने से स्वास्थ्य व्यवस्था दुरस्त होंगी , इतना ही नहीं गंदे नाले में उतर जाने से मध्यप्रदेश भारत का स्वच्छता में सिरमौर नहीं बनेगा । जिनको प्रदेश की सड़कों को दुरस्त करने की जिम्मेदारी मिली हो वे अपने महाराज की चाटूकारिता के आगे नतमस्तक हैं उन्हें जनहित के मुद्दे काले चश्मे से दिखाई नहीं दे रहे हैं तभी तो 2023 के चुनावी समर में अभिमन्यु की फँस जाने की आहट मात्र से अब सड़क पर लोहा पीटना पड़ रहा है और जनता इन तमाशबीनों का तमाशा देख रही है । जो खुले मंच पर ये एलान कर रहे थे कि विधानसभा की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना नहीं बनी तो 2023 का चुनाव नहीं लड़ूंगा उनको परियोजना के लिए प्रयास करने की बजाय ग्रामीणों के साथ भजन संध्या में थिरकते देखा जा रहा है । जनता भी भोली है इन राजनेताओं के अभिनय से भावुक हो जाती है और पोलिंग बूथ पर पिछले 5 साल में हुए अपने साथ हुए अन्याय को भूलकर इनको माननीय बना ही देती है ।

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