तो 2023 में मध्यप्रदेश में भाजपा से सीएम का चेहरा ये होंगे .

इंजी. वीरबल सिंह
राजनीति में संभावनाओं को नज़रअंदाज़ कर देना या यूँ कहना कि संभावनाओं में कुछ खास दम नहीं होता तो शायद ये बात राजनैतिक पंडितों को बेईमानी सी लगे , राजनीति का पहिया कयासों के बल पर ही घूमता है और यही वो कयास होते हैं जो कि प्रिंट मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन बन जाती हैं और सुर्खियां भी बटोर ले जाते हैं । माना जाता है कि ग्वालियर – चम्बल अंचल में राजनीति भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की नहीं बल्कि महल यानी सिंधिया परिवार के हिसाब से चलती है, राज्य से लेकर केंद्र तक सिंधिया राजपरिवार का दबदबा कायम रहा है फिर चाहे राजमाता विजयाराजे सिंधिया हों या फिर माधवराव सिंधिया या फिर राजस्थान की बात करें तो वसुंधरा राजे सिंधिया । राजमाता और बड़े महाराज की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते रहे हैं यशोधरा राजे सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया, महज डेढ़ दशक की अपनी राजनैतिक यात्रा में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभाया या यूँ कहें कि कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भरपूर तवज्जों दी , लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव ने सिंधिया परिवार को वो दिन दिखाया जिसकी कल्पना न तो सिंधिया परिवार के चश्मोचिराग ने की होगी और न ही उनके समर्थकों ने ।
2018 में सूबे में जब विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजी तो युवा तेजतर्रार नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी विधानसभा चुनाव के लिए दे दी, उनके समर्थकों ने “अबकी बार – सिंधिया सरकार” के नारों से दीवालों को रंगवा दिया, सिंधिया के मन में भी श्यामला हिल्स पर पहुँचने की ललक बेताब हो रही थी । भारतीय जनता पार्टी के लिए कांग्रेस को चुनौती देना को टेड़ी खीर नहीं थी लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता ने भारतीय जनता पार्टी में खलबली मचा दी थी और भाजपा अब सीधे तौर पर सिंधिया को टारगेट करने लगी थी, एक ओर भाजपा और शिवराज सिंह चौहान सामन्तवाद के नाम पर सिंधिया को घेरकर “माफ करो महाराज ” का नारा बुलन्द कर रही थी तो दूसरी तरफ मध्यप्रदेश की तमाम घटना जिनमें व्यापमं कांड से लेकर मंदसौर गोली कांड था,इन सब पर शिवराज सिंह को घेरने का मोर्चा सिंधिया ने संभाल रखा था । 2018 के परिणाम न तो भाजपा के अनुकूल थे और न कांग्रेस के पक्ष में, लेकिन कांग्रेस ने जोड़ तोड़ कर सरकार तो बना ली किंतु सिंधिया के साथ वही हुआ जो दशकों पहले बड़े महाराज यानी माधवराव सिंधिया के साथ हुआ था,सूबे का मुखिया कांग्रेस आलाकमान ने कमलनाथ को बनाने का फरमान जारी कर दिया । सिंधिया एक जनसेवक की भाँति साल भर तक अरमानों का घूँट पीते रहे ।
2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही कार्यकर्ता डॉ के पी यादव से करीब एक लाख से अधिक वोटों से चुनाव हार गए, सूबे का मुख्यमंत्री बनने के अरमान पाले सिंधिया के मन में लोकसभा चुनाव हारने के बाद और भी उबाल लेने लगे,अपने समर्थकों के माध्यम से ही सही मगर सिंधिया मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन जाने के बाद पीसीसी चीफ की कुर्सी पर आँखे गड़ाए बैठे थे लेकिन जब ये भी हाथ आता न दिखा तो सिंधिया ने खुले मंच से अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर जाने की धमकी दे डाली, कुछ महीनों में ही खाली बैठे सिंधिया के उसूलों पर ऐसी आँच आई कि उन्होंने राजनैतिक रूप से अपने ज़िंदा होने का सबूत दे दिया और कांग्रेस का हाथ झटककर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया, भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता इतने फिल्मी अंदाज में हुई कि कोरोना दस्तक के साथ ही मध्यप्रदेश के बाईस विधायकों को बैंगलौर में रखा गया ताकि कांग्रेस से सम्पर्क टूट सके, और सिंधिया सहित बाईस विधायक भाजपा के हुए तो मध्यप्रदेश की जोड़ तोड़ वाली कांग्रेस सरकार भरभराकर गिर गई और शिवराज सिंह चौहान चौथी दफा सूबे के मुख्यमंत्री बन गए ।
ऐसा नहीं कि सिंधिया को भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही अपने पाले में लेना चाहती थी बल्कि पहले भी अंदरूनी चाहत रही कि सिंधिया भाजपाई हो जाए क्योंकि सिंधिया न केवल युवा और डायनामिक व्यक्तित्व वाले नेता हैं बल्कि राजनीति में होने वाले भ्रष्टाचार की बू उन तक नहीं पहुंची, वे स्वच्छ छवि वाले नेता के रूप में उभरते नेता हैं । सिंधियाई विधायकों को उपचुनाव में भाजपा ने न केवल टिकिट दिया बल्कि जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाया, शिवराज मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थकों को शामिल कर सिंधिया का वजन भाजपा में बढ़ा दिया , भाजपा ने सिंधिया को जो अपनाया तो फिर भरपूर लाड़ प्यार दिया, कुछ ही महीनों में सिंधिया को भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद बनाकर दिल्ली भेज दिया, हालांकि वादे के मुताबिक मोदी मंत्रिमंडल में सिंधिया को शामिल कराने में भारतीय जनता पार्टी ने सिंधिया को लंबा इंतजार कराया लेकिन देर से ही सही जब जिम्मेदारी मिली तो नागर उड्डयन मंत्री जैसी महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी, इतना ही नहीं सिंधिया समर्थकों को शिवराज सरकार में महत्वपूर्ण विभाग तो मिले ही साथ ही ग्वालियर अंचल में अकेले नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र मुरैना को छोड़कर सिंधियाई मंत्रियों को प्रभार मिले । सिंधिया को भाजपा ने न केवल मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का इनाम दिया बल्कि पूरी तरह से सिंधिया को अपना लिया तभी तो संगठन में भी टीम वीडी के विस्तार में सिंधिया समर्थकों को भी स्थान दिया गया, इतना ही नहीं युवा मोर्चा टीम में लंबे समय से पार्टी का झण्डा और डंडा उठाने वाले युवा नेताओं को छोड़ सिंधियाई युवाओं को जगह मिलना साबित करता है कि अब सिंधिया भाजपाई तो हो ही गए हैं लेकिन भाजपा भी सिंधिया को नेता मान चुकी है, खबर है कि निगम मण्डल नियुक्तियों में भी सिंधिया समर्थकों को भरपूर तवज्जों मिलने की उम्मीद है ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब से गले में भाजपा का भगवा रंग डाला है तब से ही भाजपा की रीति और नीति को समझने की कोशिश में है, वे जानते हैं कि भाजपा में पदोन्नति संघ की नर्सरी से निकले नेताओं को कुछ अधिक ही मिलती हैं तब ऐसे में सिंधिया आरएसएस के नागपुर कार्यालय की सीढ़ियों को चढ़ते दिखाई दिए, कांग्रेस में रहते शायद ही कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया को मंडल स्तर के नेताओं के घर – घर दस्तक देते देखा गया हो लेकिन भाजपाई होते ही वे जिस शहर के दौरे पर होते हैं उस शहर में आरएसएस के नेताओं से लेकर मण्डल स्तर के कार्यकर्ताओं से मुलाकात करना नहीं भूले, प्रदेश की राजनीति में बड़े नेता माने जाने वाले नेताओं के परिवार में बैठकर कभी लंच करते दिखाई दिए तो कभी उनके साथ सेल्फी देते, सिंधियाई विधायक तो उनके साथ हैं ही इसलिए वे मूल भाजपाई विधायकों और नेताओं को साधने की कोशिश मध्यप्रदेश दौरों के समय करते हैं, कभी हवा हवाई नेतागिरी करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया क्षेत्र में आई बाढ़ में जमीनी स्तर पर बाढ़ पीड़ितों के आँसू पोंछते भी दिखाई दे जाते हैं । मध्यप्रदेश में चौथी दफ़ा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे शिवराज सिंह को लेकर मीडिया से लेकर जनता के बीच लगातार कयास जारी है कि शिव ब्रह्मपाश में फंस गए हैं और उनकी कुर्सी को खतरा है, देर सबेर ही सही उनकी कुर्सी जाने का डर स्वयं शिवराज सिंह से लेकर जनता को भी आशंकित करता रहता है कि लेकिन कहा न कि राजनीति है और यहाँ कयास लगाए जाते हैं, एक कयास ऐसा भी राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन रहा है कि लंबी पारी खेलने वाले शिवराज सिंह के बाद कौन है जो मध्यप्रदेश की राजनीति को भाजपा का झण्डा थामकर आगे बढ़ेगा, ऐसे में जनता से लेकर तमाम मीडिया जगत के जानकारों का कहना है कि सिंधिया ही है जो 2023 में मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे ।
( नोट : लेखक के अपने निजी विचार हैं )

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