आखिर गार्बेज शुल्क लिया ही क्यों जा रहा है?
इनसे बेहतर तो अंग्रेज थे जिन्होंने कम से कम नमक पर शुल्क लगाया था

डॉ. सुनील अग्रवाल
प्रोफेसर – गजराराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर
क्या नगर निगम की स्वताः ही जिम्मेदारी नहीं है कि वह अपना यह जिम्मेदारी पूर्ण कार्य अपनी ईमानदारी और निष्ठा से अपने ही संसाधनों से संपादित करें?
जनता से क्या हर चीज का लगान लोगे?
जनता के द्वारा विभिन्न मदों में दिया जा रहा लगान ( टैक्स) कहां उपयोग/ दुरुपयोग निरंतर हो रहा है सब दिखाई दे रहा है।
राजा शाही और अंग्रेजों के जमाने में भी जब कोई इमारत है और सड़कें बना करती थी तो वे सैकड़ों साल चला करती थी लेकिन यहां तो रोजाना शहर सौंदर्यी करण के नाम पर हर दो चार पांच साल में करोड़ों अरबों की लागत से बने फुटपाथ, डिवाइडर और सड़कें तोड़ दिए जा रहे हैं या वह इतने नाजुक होते हैं कि वे खुद ब खुद टूटकर बिखर जाते हैं।
शहर के चौराहों पर बिजली की झालरों से ऐसे सजाने की कोशिश की जा रही है जो 4 दिन भी नहीं टिक पा रही हैं। क्या उन ठेकेदारों और अफसरों की जवाबदेही निर्धारित है?
जनाब जनता इतनी अमीर और पैसे वाली नहीं है। बेरोजगारी चरम पर है जरा रहम करो। फाइव स्टार नुमा एयरकंडीशन दफ्तरों में बैठ कर और जनता के टैक्स पर निर्भर सैंकड़ों एकड़ों में बने सरकारी महलों में फ्री में भोग विलास में बसर कर रही मानसिकता को बाहर निकालो और देखो और सोचो कि लोग कैसे तिल तिल कर सड़कों पर मर रहे हैं। खाने पीने और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए मोहताज है।
नगर निगम अगर अपने बलबूते पर जनता के द्वारा विभिन्न प्रकार के टैक्स दिए जाने के बावजूद सफाई कार्य भी नहीं कर सकता है और उसके ऊपर गार्बेज शुल्क लिया जाना शर्मनाक है।
जनता के द्वारा गार्बेज शुल्क दिए जाने का मतलब है कि आप और ज्यादा गारबेज फैला रहे हैं और गारबेज से फैली उस गंदगी को स्वीकार कर सूंघने को तैयार हैं।

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