PLACE-YOUR-ADVERT-HERE
add-banner
IMG-20231202-WA0031
IMG_20220718_112253
IMG-20250516-WA0020
IMG-20250516-WA0017
आलेखमध्य प्रदेशराजनीतिराज्यसंपादकीय

बुलडोजर मामा” बनने से अच्छा है भांजे-भांजियों के मामा बने रहना

 

रामेश्वर धाकड़

No Slide Found In Slider.

भारत विविधताओं से भरा देश है। हर राज्य की बोली, पहनावा, व्यंजन, लहजे में विविधता है, उसी तरह राज्यों की राजनीति में भी विविधता है। हर राज्य के सियासी समीकरण जुदा हैं। चुनावी मुददे अलग हैं। उत्तरप्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार ने निरंकुश अपराध और अपराधियों को कुचलने के लिए बुलडोजर चलाया था। यही बुलडोजर विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के लिए सियासी फायदेमंद साबित हुआ। उप्र में विधानसभा चुनाव में बुलडोजर का सियासी फायदा देख मप्र में भी अपराधियों पर बुलडोजर चल पड़ा है। बुलडोजर के जरिए मध्यप्रदेश में भी भाजपा चुनावी मूड में आती दिखाई पड़ रही है। अहम बात यह है कि बुलडोजर के बहाने करोड़ों भांजे-भांजियों के मामा की छवि को ‘बुलडोजर मामा” के रूप में बदलने की कोशिशें हो रही हैं। राजनीतिक स्वार्थ के लिए कुछ नेता ‘बुलडोजर मामा” की छवि को प्रचारित करने में जुट भी गए हैं। जबकि शिवराज सिंह चौहान की छवि दयालू और सहृदय मामा की है। ऐसा मामा जो मप्र के गरीब बच्चों के लिए सगी मां से भी ज्यादा दुलार करता है। गांव-गांव में बच्चे ही नहीं बल्कि बूढ़े, जवान भी मामा बोलते हैं। जब दौरे पर जाते हैं तो कोई यह कहता सुनाई नहीं देता कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आ रहे हैं, बल्कि मामाजी आ रहे हैं।
शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 को मप्र के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही समाज के दबे, कुचले वर्ग को संरक्षण देना शुरू किया। समाज के अपराधियों को खत्म करने का जिम्मा खुद उठाया। तब हर जिले में एक दादा भाई (गैंगस्टर)हुआ करते थे, मप्र की धरती पर डकैतों का आतंक था। आपने इनका सबका सफाया किया, लेकिन किसी डकैत या गैंगस्टर के घर पर बुलडोजर नहीं चलाया। हमेशा से यह सुनते आए हैं कि मप्र का शांति का टापू है। उप्र के अपराध ग्राफ से तुलना करें तो सच में मप्र शांति का टापू है। ऐसे में यदि उप्र की नकल करके करोड़ों भांजे-भांजियों के मामा और करोड़ों बुजुर्गों के ‘श्रवण कुमार” की छवि वाले शिवराज सिंह चौहान को ‘बुलडोजर मामा” बनाया जा रहा है, तो यह एक मुख्यमंत्री के लिए तो ठीक हो सकता है, लेकिन जैत गांव से निकले “पांव-पांव वाले भैया” शिवराज सिंह चौहान की छवि के अनुकूल तो कतई नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान में समाज के हर वर्ग के प्रति करूणा है, दया है। इसका अंदाजा उनके द्वारा बनाईं योजनाओं से लगाया जा सकता है। बेटियों के प्रति शिवराज के मन में अपार स्नेह, प्रेम भाव है। महिला सशक्तिकरण का जुनून मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही था। मप्र देश का पहला राज्य है, जहां महिलाओं को पंचायत और नगरीय निकायों में 50 फीसदी आरक्षण दिया। पुलिस जैसी भर्ती में महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण दिया। सांसद, विधायक बनने से पहले ही 7 अनाथ बच्चियों को गोद लेकर सिर्फ लालन-पोषण ही नहीं किया, बल्कि पिता धर्म निभाकर कन्यादान भी किया। बेटियों के प्रति लगाव ही था कि 1 अप्रैल 2007 को लाड़ली लक्ष्मी योजना का जन्म हुआ। शिवराज जी, आज आप 43 लाख बेटियों के मामा हैं। इतिहास, धार्मिंक गृंथों में भी ऐसा उल्लेख नहीं है कि किसी मामा की लाखों भांजियां हुईं हों। 2 अप्रैल 2022 को लाड़लियां 15 साल की होने जा रही हैं। इसी दिन आपकी सरकार लाड़ली लक्ष्मी योजना को पूरे राज्य में धूम-धाम से मनाने जा रही है। इसी तरह कन्यादान योजना के तहत आपने लाखों भांजियों के हाथ पीले कराए हैं। नाबालिगों के साथ दुराचार करने वाले दरिंदों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने का काम आपके द्वारा किया गया।
भारत जैसी देवभूमि में जन्म लेने वाले हर इंसान की ख्वाईश होती है कि अपने जीवनकाल में वह तीर्थ जरूर करे। आपने गरीबी को करीब से देखा है। कई बुजुर्ग इसी वजह से तीर्थ नहीं कर पाते थे। 10 साल पहले वर्ष 2012 में आपने तीर्थ दर्शन योजना चलाई। जिसमें सभी संप्रदाय के बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा कराई। आज आप लाखों बुजुर्गों के ‘श्रवण कुमार” भी हैं। यह योजना पिछले सालों में बंद कर दी गई थी, लेकिन आपने फिर से शुरू कर दी है।
शिवराज जी आप मुख्यमंत्री के रूप 15 साल से सेवा कर रहे हैं। आपके भीतर कभी अहंकार नहीं दिखा। आप सियासत में जितना ऊंचा उठे, सज्जनता में उतना नीचे झुके। यही आपकी ताकत है। समाज के हर वर्ग में आपकी छवि अति संवेदनशील मुख्यमंत्री की है। पीडि़त और शोषितों की हर संभव मदद को आतुर रहते हैं। राज्य में किसी भी आपदा, घटना के समय आपकी संवेदनशीलता प्रगट होती है। यही वजह है कि आप जन-जन के दिल में है और शिवराज मामा की छवि है। इस छवि को अब बुलडोजर मामा में मत बदलिए।
शिवराज जी मैंने आपकी जन आशीर्वाद और जन दर्शन यात्राओं को कवर किया है। लोग मुख्यमंत्री को देखने नहीं, बल्कि शिवराज भैया की झलक देखने के लिए उमड़ते थे। लोगों के प्रति आपकी संवेदनशीलता और लोगों का आपके प्रति अपनत्व का भाव ही है जो रात 3-4 बजे तक भीड़ उमड़ती रहती है। मुझे याद है कि आप मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार मार्च 2006 में शिवपुरी जिले के ओला प्रभावित गांव गए थे, तब ग्वालियर-चंबल में दस्यु समस्या चरम पर थी। आपने बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के दस्यु प्रभावित क्षेत्र गोपालपुर थाना क्षेत्र के पाडऱखेड़ा गांव में अपना उडनख़टौला उतार दिया। ग्रामीणों के बीच आप खटिया पर बैठकर बतियाए, तब पहली बार लोगों को आपके भीतर अपनत्व भाव दिखा। इसके बाद आप दतिया प्रवास के दौरान मोटरसाइकिल पर बैठकर पुलिस थाना पहुंच गए। शिवराज जी, आपने मामा की छवि को यूं ही नहीं बनाया, इसके पीछे आपकी 17 साल की कठोर तपस्या है। ‘बुलडोजर मामा” के चक्कर में इस तपस्या को यूं ही बर्बाद मत कीजिए।
हां मप्र की धरती से अपराधियों का खात्मा करना बेहद जरूरी है, लेकिन उप्र की तर्ज पर तो कतई नहीं। उप्र कुख्यात अपराधियों का गढ़ है, लेकिन मप्र की तुलना उप्र से कभी नहीं की जा सकती है। अपराधियों को खत्म करने के लिए प्रशासनिक तंत्र है। जिस तरह से मप्र की धरती से डकैतों, प्रतिबंधित संगठन, शहरों के गैंगस्टरों का खात्मा किया, उसी तरह अपराधियों का खात्मा हो सकता है। बड़ी बात यह है कि शहरों में अवैध मल्टियां तन जाती है। सैंकड़ों हेक्टेयर सरकारी भूमियों पर अतिक्रमण हो जाता है। गरीब की जमीनों को हथिया लिया जाता है। जिन अपराधियों पर आज बुलडोजर चल रहे हैं, उनमें से कईयों पर वर्षों से संगीन मामले दर्ज हैं, लेकिन वे खुले घूमते रहे। यह बिना प्रशासन तंत्र की मदद के संभव नहीं है। बुलडोजर तो प्रशासनिक अपराधियों पर भी चलना चाहिए। अपराधों की रिपोर्ट नहीं लिखना, किसी की संपत्ति हथियाए जाने पर प्रशासनिक मदद नहीं मिलना। जमीनों की हेराफेरी में शामिल प्रशासनिक अपराधियों पर भी ऐसी कार्रवाई करें, जिससे सुशासन का खौफ पैदा हो और बदलती प्रशासनिक व्यवस्था देश के लिए नजीर बने।

(लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Chief Editor JKA

PicsArt_10-26-02.06.05

FB_IMG_1657898474749
IMG-20250308-WA0007

Related Articles

Back to top button