नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस का मुकाबला भाजपा से अधिक कांग्रेस से ही होगा

राजनीतिक : कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही कांग्रेस में अंतर्कलह थमने का नाम नहीं ले रही है, मंडलम स्तर से प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर वर्चस्व की लड़ाई जारी है, ग्वालियर अंचल में सिंधिया के पाला बदल लेने के बाद कार्यकर्ताओं की एक लंबी फौज भाजपा के साथ हो गई हालांकि ये भी किसी से छुपा नहीं है कि सिंधियाई नेताओं को भाजपाई नेता कितना भाव दे रहे हैं या फिर सिंधियाई नेताओं के आने से भाजपाई नेता कितना ठगा महसूस कर रहे हैं । क्षेत्र में कांग्रेस लगातार गुटों में बंटती जा रही है, एकजुटता के नाम पर आधा दर्जन कार्यकर्ता ही सरकार के खिलाफ होने वाले किसी आंदोलन का हिस्सा होते हैं । पहले से ही हाशिए पर चल रही कांग्रेस के सामने अब चुनौती है कि आगामी नगरीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से लड़ेगी या फिर अपना अपना वर्चस्व बचाने शेष रहे कांग्रेसियों से । वो भारतीय जनता पार्टी से लड़ेगी या फिर अपने ही नेताओं से ये तो आने वाला वक़्त बता देगा लेकिन इतना सब कुछ खोने के बाद कांग्रेस में न सक्रियता दिखाई दे रही है और न ही एकजुटता । आने वाले समय में इस बात का अंदेशा है कि नगरीय निकाय चुनाव में किसी एक के नाम पर सहमति बन पाने में कठिनाई दिखाई दे रही है, हर कोई टिकिट की जुगत में है और यदि ऐसा हुआ तो न केवल विरोध के स्वर जोर से सुनाई देंगे बल्कि बगावत कर विरोधी की नाव में सवार भी होंगे और इतना ही नहीं कांग्रेस का झंडा थामकर भितरघात कर सकते हैं । प्रदेश में कमलनाथ पीसीसी चीफ की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते हैं तो केंद्र में गांधी परिवार में बेटा माँ को तो माँ बेटे को कुर्सी सौंपकर बाकी नेताओं को ठेंगा दिखाने का काम कर रहे हैं, आपसी लड़ाई में मध्यप्रदेश की सरकार गई, पंजाब में ऐसा द्वंद्व मचा कि चारों खाने चित्त हो गए, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में समय समय पर सियासी तूफान कांग्रेस के किले की बची दीवारों को कभी भी ढहा सकता है और यह तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है ।

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