जानकारी लेने बैलगाड़ी और ढोल नगाड़ों के साथ कार्यालय पहुँचा RTI एक्टिविस्ट
आरटीआई एक्टिविस्ट जब विभाग जो भूमि मामलों से संबंधित हैं जैसे कि पीडब्ल्यूडी, सहकारी, स्वास्थ्य और बिजली, नगर पालिका आदि जैसे निकाय जो सीधे आम लोगों से निपटते हैं. यह विभाग या तो वास्तविक जानकारी को गलत उद्देश्यों से रोकते हैं, या फिर जानकारी मांगने वाले अपीलकर्ताओं के साथ वैध जानकारी साझा करने से इनकार करते हैं या उन्हें गुमराह करने के उद्देश्य से गलत सूचना दे देते हैं.

शिवपुरी : आम आदमी को भारत मे सूचना के अधिकार के जरिये जानकारी लेना इतना आसान भी नही है जबकि आरटीआई एक्टिविस्ट को सम्बंधित अधिकारी या विभाग बड़ी मुश्किल से जानकारी देता है या हिचकते है, मिल भी जाती है तो वो भी आधी अधूरी या मिलती ही नही । ऐसा ही बैराड़ के आरटीआई एक्टिविस्ट माखन धाकड़ के साथ हुआ है । पहले तो विभाग ने जानकारी देने से मना कर दिया और आरटीआई के आवेदन को कार्यालय में दबा कर रख लिया जिस के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट माखन धाकड़ ने विभाग के प्रथम अपीली अधिकारी को अपील की , लेकिन यहां भी राह आसान नही थी जिस के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट माखन धाकड़ ने भोपाल तक का सफर किया तब जाकर जानकारी मिली तो करीब 9 हजार पेज की जानकारी के लिए उनसे करीब 25 हजार रु जमा करवाये गए जबकि यहां जानकारी आम लोगो के हित की थी । इस लिये आरटीआई एक्टिविस्ट माखन धाकड़ के पास इतने पैसे की व्यवस्था न होने पर भी कर्ज लेकर पैसे जमा कराए । इतने संघर्ष के बाद खाली जेब होने का दर्द तो था लेकिन जानकारी मिलने की खुशी भी थी। माखन नगर परिषद बैराड़ कार्यालय बैलगाड़ी से पहुंचे। पेज गिनने के लिए चार अपनो को साथ ले गए जिन्हें गिनने में दो घण्टे लग गए। फिर सिर पर कागज लेकर माखन ने स्वयं बैलगाड़ी में रखे और ढोल नगाड़ों के साथ वो अपने कार्यालय के लिए रवाना हुए। बाजार में इस अजीब तरह के जश्न की चर्चा आमजन में बनी हुई है ।
आरटीआई के तहत गलत जानकारी देने पर लगता है जुर्माना
आरटीआई के तहत सूचना मांगने का अधिकार तो मिल गया, किंतु वास्तविकता यह है कि विभागों से जानकारी मांगना शिवपुरी जिले के बैराड़ में गले की फांस बनता जा रहा है. इनके उत्पीड़न का मामले लगातार बढ़ रहे हैं ।आरटीआई के अधिकतर मामले पंचायती राज, नगर निगम, ग्रामीण व नगर विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, भूमि सुधार, राजस्व तथा पुलिस से जुड़े होते हैं । यह देखा गया है कि अगर संबंधित अफसर अनुसूचित जाति या जनजाति का पदाधिकारी है तो वह एससीएसटी एक्ट के तहत उत्पीड़न का मामला दर्ज कराता है और वहीं अगर महिला अफसर है तो छेड़खानी का आरोप लगाते हुए फर्जी एफआइआर दर्ज कराने से गुरेज नहीं करती है । आप को बता दे कि आरटीआई के तहत गलत जानकारी देने पर कुछ राज्यो में जुर्माना तक लग चुका है ।
आरटीआई यानी हक की लड़ाई
इस कानून का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। यह अधिकार आपको ताकतवर बनाता है। इसके लिए सरकार ने केंदीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन भी किया है ।
आरटीआई कानून की उड़ रही धज्जियां
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 अब लोगों को सूचना नहीं दिला पा रहा है। आए दिन किसी ना किसी विभाग से सूचना नहीं मिलने की शिकायतें आला अफसरों के पास पहुंच रही हैं, लेकिन कार्रवाई तब भी नहीं होती। एक साल से भी ज्यादा समय तक विभागों के चक्कर काटने के बाद लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वे शिकायत करें ।
क्या कहता है कानून
सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 (1) के तहत 30 दिन के अंदर पूर्ण सूचना देने का प्रावधान है। 30 दिन के अंदर सूचना ना मिलने पर एक्ट की धारा 19 (1) के तहत प्रथम अपील देने का प्रावधान है तथा प्रथम अपील का निपटारा 19 (6) के अनुसार 30 दिनों के अंदर होना चाहिए। सूचना नहीं देने पर एक्ट की धारा 20 (1) के तहत जुर्माना लगाने का अधिकार राज्य सूचना आयोग के पास है। एक्ट की धारा 20 (2) के अनुसार सूचना नहीं देने वाले या गलत सूचना देने वाले अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई करने का अधिकार भी राज्य सूचना आयोग के पास ही है। राज्य सूचना आयोग कार्रवाई न करे तो एक्ट में आगे कोई प्रावधान नहीं है।

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