राजनीति : म. प्र. अजब है शिवपुरी गजब है, क्यों बह रही है प्रत्याशी बदलने की बयार….

विशेष : मध्यप्रदेश ऐतिहासिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से वास्तव में अजब है और उससे भी गजब है प्रदेश का एक जिला शिवपुरी । शिवपुरी अपने आप में कई विविधताओं के साथ अलग ही पहचान रखता है तो प्रदेश में सत्ता का केंद्र ग्वालियर को माना जाता है तो शिवपुरी की राजनीति में सबको दिलचस्पी रहती है और हो भी क्यों न , यहां को राजनीति सदैव से ही सिंधिया राज घराने के इर्द गिर्द घूमती रही है फिर रियासत का दौर रहा हो या फिर सियासत । अब बात अजब – गजब की इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि शिवपुरी से लंबे समय से यशोधरा राजे सिंधिया विधायक हैं तो शेष सीटों पर या तो ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों का कब्जा है या फिर 2023 में सिंधिया समर्थक चाह रहे हैं। जिले की दो विधानसभा सीट आजकल शिवपुरी की राजनीति में खासी चर्चा में है।
कोलारस : यह सीट भी सिंधिया के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है , यहां से सिंधिया समर्थक रामसिंह यादव विधायक रहे । उनके निधन के बाद उनके बेटे महेंद्र सिंह यादव विधायक चुने गए हालांकि महेंद्र सिंह यादव 2018 में भारतीय जनता पार्टी के वीरेंद्र रघुवंशी से चुनाव हार गए थे। वीरेंद्र रघुवंशी भी एक समय में सिंधिया के सबसे करीबी नेताओं में शुमार थे लेकिन बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने खासमखास रहे डॉ के पी सिंह यादव से लोकसभा चुनाव हार गए थे उसके बाद सूबे में हुए सत्ता उलटफेर में कोलारस के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह यादव भी सिंधिया और उनके समर्थक तत्कालीन कई विधायक और मंत्रियों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। महेंद्र सिंह अब 2023 में भारतीय जनता पार्टी के टिकिट पर विधानसभा जाना चाहते हैं और इसके लिए वे प्रयासरत हैं। सवाल यह है कि भाजपा का सिटिंग एमएलए होने के बाद आखिरकार महेंद्र सिंह को भाजपा मौका कैसे देगी , क्या सिंधिया के एहसानों से मजबूर भाजपा यहां अपने सिटिंग एमएलए का टिकिट बदल देगी ।
पोहरी : पोहरी की कहानी कोलारस के उलट है , यहां सिंधिया समर्थक सुरेश धाकड़ विधायक हैं और शिवराज सरकार में पीडब्ल्यूडी राज्यमंत्री का जिम्मा संभाले हुए हैं। सुरेश धाकड़ ने 2018 में भाजपा के तत्कालीन दो बार के विधायक प्रहलाद भारती को न केवल चुनाव हराया था बल्कि भाजपा तीसरे नंबर पर सिमट कर रह गई। सत्ता के उलटफेर में अपने राजनीतिक गुरु सिंधिया के साथ पहली बार विधायक बने सुरेश धाकड़ भी विधायकी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे लेकिन बाद में भाजपा ने उन्हें न केवल उपचुनाव में टिकिट दिया बल्कि चुनाव से पूर्व मंत्री भी बनाया था। अब निगाहें 2023 पर टिकी हैं जो केवल सुरेश धाकड़ की ही नहीं बल्कि भाजपा के वो तमाम नेता हैं जिनका राजनीतिक भविष्य सुरेश के भाजपा में शामिल होने के बाद लगभग समाप्त सा हो गया है। पूर्व विधायक प्रहलाद भारती कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के करीबी माने जाते हैं तो सुरेश ज्योतिरादित्य सिंधिया के , प्रहलाद भारती अब 2023 में एक बार फिर भाजपा से टिकिट के लिए प्रयासरत हैं। सवाल यहां भी वही है कि आखिरकार भाजपा में अपने ही नेता का विकल्प बनकर क्यों आ रहे हैं, सिर्फ विकल्प ही नहीं विपक्ष भी बन जाएं तो चुनावी वक्त में यह कोई बड़ी खबर नहीं होगी ।

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