सूबे में फलती – फूलती भाजपा की वंशवाद बेल
हाशिये पर जा चुकी छात्र राजनीति आज राजनैतिक पार्टियों के लिए महज़ चुनावी हथकंडे बनकर रह गए हैं। वंशवाद और परिवारवाद की फैल रही जड़ों ने युवाओं और देश की सक्रिय राजनीति मे उनकी भागीदारी के बीच एक खाई बनाने का काम किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि नवीनतम राजनीति को स्वागत करने की बजाय कमोबेश सारे दलों ने वंशवाद और परिवारवाद के पैरों तले कुचलने की कोशिश की है।

इंजी. वीरबल सिंह
राजनीतिक : हाशिये पर जा चुकी छात्र राजनीति आज राजनैतिक पार्टियों के लिए महज़ चुनावी हथकंडे बनकर रह गए हैं। वंशवाद और परिवारवाद की फैल रही जड़ों ने युवाओं और देश की सक्रिय राजनीति मे उनकी भागीदारी के बीच एक खाई बनाने का काम किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि नवीनतम राजनीति को स्वागत करने की बजाय कमोबेश सारे दलों ने वंशवाद और परिवारवाद के पैरों तले कुचलने की कोशिश की है।
भारतीय राजनीति में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें सियासत विरासत में मिली है । अखिलेश यादव से लेकर अनुराग ठाकुर और सचिन पायलट से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक इसके उदाहरण हैं । भारतीय जनता पार्टी अक्सर वंशवाद के खिलाफ मुखर होती दिखाई देती है लेकिन आज यदि वंशवाद की बेल सबसे अधिक फलफूल रही है तो वो भारतीय जनता पार्टी में । एक लंबी फेरिहस्त है जो अपने पिता की सियासत के नक्शेकदम पर चलकर अपने भविष्य की कहानी गढ़ने को तैयार बैठे हैं । वंशवाद के बढ़ावे से ऐसे युवा जिनके परिवारों का राजनीति से कोई सरोकार नहीं था, वो दूर होते जा रहे हैं क्योंकि नेता पुत्रों के चलते उन्हें मौका नहीं मिल रहा है ।
मध्यप्रदेश की राजनीति में वर्तमान परिदृश्य में विश्वास सारंग,कृष्णा गौर,जयवर्धन सिंह, विक्रांत भूरिया, नकुलनाथ ,अरुण यादव से लेकर यशोधरा राजे सिंधिया तक तमाम ऐसे लोग हैं जो अपने परिजनों के बाद या उनके होते हुए विरासत में मिली सियासत को कर रहे हैं और देख रहे हैं । देश में कई राजनीतिक दल तो ऐसे भी है कि न केवल वंशवाद की राजनीति से भरे पड़े हैं बल्कि कुछ दल तो ऐसे भी हैं जो वंशवाद और परिवारवाद की चौखट से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं । चूँकि भारतीय जनता पार्टी राजनीति में वंशवाद के खिलाफ रही है ऐसे में मध्यप्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं के पुत्र और पुत्री अपने पिता की सियासत की विरासत को संभालने के लिए राजनीति की पाठशाला में ककहरा सीख रहे हैं और कुछ परिपक्व होकर सत्ता का हिस्सा होने को लालायित हैं ।
पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया मैदान में पूरी तैयारी के साथ पिता की तैयार की हुई पिच पर चौका मारने के इंतजार में है । गौरीशंकर बिशेन की पुत्री मौसम बिशेन बालाघाट में राजनीति का ककहरा सीख कर परिपक्व हो चुकी हैं तो शिवराज सरकार के मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव लम्बे समय से क्षेत्र में सक्रिय राजनीति में रहकर पिता के काम देख रहे हैं । पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भाजपा प्रभात झा के पुत्र तुषमुल झा अब भोपाल में सक्रिय हैं उन्हें ग्वालियर में कई कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका में देखा जाता है और वे युवा मोर्चा के पदाधिकारी भी है । भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तो अपनी विरासत अपने पुत्र आकाश विजवर्गीय को सौंप ही दी और आकाश वर्तमान में विधायक हैं । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान लंबे समय से अपने पिता के विधानसभा क्षेत्र को संभाल रहे हैं इसके अलावा सक्रिय राजनीति में रहकर विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव के समय सभाएँ भी लेते रहे हैं । केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेन्द्र प्रताप सिंह तोमर भी पिता के नक्शेकदम पर चलकर भविष्य की राजनीति के लिए सक्रिय हैं, 2018 में उनके लिए टिकिट की माँग थी लेकिन मिल नहीं सका । इसके अलावा इस सूची में एक और नाम जुड़ गया है और वो नाम अभी हाल ही में भाजपा में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन सिंधिया का , अभी हाल ही में महाआर्यमन ने पहली बार अपना जन्मदिन अपने फॉलोवर्स और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच मनाया है जिसके बाद से उनकी राजनीति में एंट्री को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है, इसके अलावा प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा का नाम भी शामिल है जो इस बात को नकारने के लिए तैयार है कि भारतीय जनता पार्टी वंशवाद की राजनीति की विरोधी है ।
राज्य से लेकर केंद्र तक सभी नेता कॉलेज की राजनीति से ककहरा सीख कर आज सफलता की ऊंचाइयों पर हैं लेकिन विडम्बना देखिए कि कॉलेज की छात्र राजनीति राजनीतिक दलों ने अपने निहितार्थ खत्म कर दी है । वंशवाद को बढ़ावा देते हुए वे खुद के सक्रिय राजनीति में रहते हुए अपने पुत्र-पुत्रियों को स्थापित करने की पूरी कोशिश में है जिनमें कुछ सफल भी हुए हैं ।

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