
खरी खोटी ( इंजी. वीरबल सिंह )
2018 का आम विधानसभा हम सबको बेहतर याद है, भारतीय जनता पार्टी ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को नहीं बल्कि तत्कालीन कांग्रेस नेता फायर ब्रांड युवा नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया को टारगेट किया था । भारतीय जनता पार्टी ने सिंधिया को भूमाफिया, सामंतवादी ही नहीं कहा लेकिन माफ करो महाराज ! का नारा बुलंद कर चुनावी सभाओं में हुंकार भरी । पूर्ण बहुमत न तो कांग्रेस को मिला था और न ही भाजपा के पक्ष में था, सरकार बनने से लेकर डेढ़ साल बाद सत्ता परिवर्तन की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को सड़क पर छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया तो मोदी ने उनको विमान सौंप दिया, भाजपा में शामिल होने के बाद लोगों को लगा कि सिंधिया अब महाराज से भाई साहब हो गए हैं लेकिन मंत्रालय संभालने के बाद पहली बार ग्वालियर आए सिंधिया के स्वागत सत्कार ने साबित कर दिया था कि महाराज अब भी महाराज ही है और महाराजियत हैं कि जाती नहीं । राजनैतिक पंडितों के वो सारे कयास धरे के धरे रह गए जिनमें कयास थे कि महाराज को भाजपा चक्रव्यूह में फंसाकर मारेगी लेकिन ग्वालियर दौरे पर आए सिंधिया की अगवानी करने ग्वालियर की राजनीति के सत्ता केंद्र रहे नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर से 50 किलोमीटर दूर गए तो सब अबाक थे….. सवाल उठ खड़े हुए कि अपने समकक्ष नेताओं को राजनीतिक कूटनीति से पीछे छोड़ सत्ता के शिखर पर पहुंचे नरेंद्र सिंह तोमर की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि ये दृश्य देखने को मिला था, क्या तोमर सिंधिया को साथ लेकर संदेश दे रहे थे कि हम साथ – साथ हैं या फिर दिल्ली में बैठी आलाकमान की तिकड़ी के निर्देश थे कि महाराज की अगवानी में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए । भारतीय जनता पार्टी द्वारा नवागत सिंधिया को इतनी तवज्जों देना मजबूरी है या फिर भाजपा एक नए प्रयोग की दूरगामी सोच पाल रही है ये अब भी सियासी गलियारों में पहेली बनकर घूम रहा है ।
2019 के लोकसभा चुनाव में अपने ही कार्यकर्ता से चुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया बीते दिनों गुना,अशोकनगर और शिवपुरी के दौरे पर थे , जिस प्रकार ग्वालियर में अभूतपूर्व स्वागत हुआ उससे कहीं अधिक पलक पावड़े बिछाकर जिस नेता को चुनाव में हरा दिया उसी नेता पर पुष्प वर्षा कर प्रेम दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । भाजपा को सिंधिया ने और सिंधिया ने भाजपा को स्वीकार कर लिया, एक दूसरे की रीति नीति भी समझ चुके हैं लेकिन सिंधियाई नेता, मंत्री, विधायक सिंधिया समर्थक होने से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं , उनकी गाड़ियों की नाम प्लेट से लेकर स्वागत में लगे होर्डिंग बयाँ कर रहे हैं कि “अपने तो बस महाराज !” उनके लिए सब कुछ महाराज ही है तभी तो शिवपुरी शहर में “पधारो महाराज !” जैसे पोस्टर सामन्तवाद की सोच को दिखा रहे थे । सिंधियाई नेता अक्सर कहते सुने जाते हैं कि हम सबके लाड़ले नेता महाराज साहब, यानि कि वो जता चुके कि माफ करो शिवराज ! अपने तो बस महाराज ! सिंधिया के मध्यप्रदेश दौरे के समय तुलसी, गोविंद और प्रभु ही दिखाई देते हैं… भाजपा कैडर के मंत्री दूरी ही रखते हैं ऐसा क्यों ? जिनसे सिंधिया घिरे दिखाई देते हैं उस भीड़ में सिंधियाई भाजपा नेताओं के अलावा वे मूल भाजपाई नेता शामिल हैं जो भाजपा में रहकर सत्ता और संगठन के केंद्र किनारे पर आकर अपने राजनैतिक भविष्य के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं… जो लोग कभी सिंधिया के खिलाफ मुखर आवाज थे उनको आज सिंधिया के सामने हाथ बाँधे खड़े देखा जा सकता है ।
जब पूरा प्रदेश और प्रदेश भाजपा चाहकर भी शिवराज सिंह को अपना नेता मानने से इंकार नहीं कर पा रहे हो तब सिंधियाई नेताओं द्वारा अपने तो बस महाराज जैसे स्लोगन राजनीति में चर्चा का विषय बन जाते हैं । सिंधिया इस तरह की सक्रियता से सूबे की राजनीति में अपनी अलग ही राजनीतिक बिसात बिछा रहे हैं । तो महाराजा का राजा और उनके युवराज के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलकर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की नए सिरे से नई कोशिश को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । तो बड़ा सवाल केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ज्योतिरादित्य के निशाने पर आए दिग्विजय सिंह और जयवर्धन की मोर्चाबंदी आखिर ग्वालियर चंबल और राजघराने की राजनीति से आगे भविष्य की भाजपा में सिंधिया को कितना मजबूत साबित करेंगे.. जबकि किसी भी राजनीतिक मंच से दूर पुत्र महाआर्यमन की समर्थकों और समाज के बीच एंट्रीवहो चुकी है.. 2023 को लक्ष्य बनाकर संगठन द्वारा सत्ता पर कसावट के इतर सिंधिया की इस प्रकार की राजनीति के क्या मायने हो सकते हैं ,क्या खुद महाराज अपने युवराज के लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं या फिर कांग्रेस में रहते जिस श्यामला हिल्स पर बैठने सपना पूरा नहीं कर पाए महाराज भाजपा में रहकर पूरा करने के लिए एक और सपना देख रहे हैं लेकिन मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने के 100 दिन पूरे करने जा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिग्विजय सिंह के गढ़ राधौगढ़ से जयवर्धन के खिलाफ भाजपा की भविष्य की घेराबंदी के स्पष्ट संकेत दिए.. तो अपने पुराने संसदीय क्षेत्र में पुरानी सियासी जमीन को नए सिरे से मजबूत साबित करने की कवायद लगे हाथ तेज कर दी.. सियासी शक्ति प्रदर्शन सिर्फ राधौगढ़ में दिग्गी राजा के करीबी परिवार के युवा चेहरे वीरेंद्र सिंह को भाजपा की सदस्यता दिला कर नहीं किया.. बल्कि इस पूरे दौरे के दौरान स्वागत अभिनंदन में गुना शिवपुरी से लेकर अशोकनगर तक भारी भीड़ जुटाकर यह साबित कर दिया कि महाराजा का तिलिस्म भाजपा में भी उन लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा जिनका सिंधिया परिवार से गहरा नाता रहा । सिंधिया मध्यप्रदेश के भविष्य की राजनीति का एक नया प्रयोग हो सकते हैं और हो सकता है इसके पीछे पार्टी के चाणक्य मोदी-शाह की जोड़ी की सोच हो जिस पर पार्टी मुखिया नड्डा ने मुहर लगा दी हो या फिर मध्यप्रदेश में चौथी बार की पारी खेल रहे राजनीति के माहिर खिलाड़ी ब्रह्मपाश में शिव का विकल्प हो । जो भी हों भविष्य तय करेगा लेकिन सिंधिया के कार्यक्रमों से उनके समर्थकों ने तो कह दिया माफ करो शिवराज, अपने तो बस महाराज ।
(नोट-ये लेखक के अपने निजी विचार हैं ।
लेखक स्वन्त्र पत्रकार और वेब पोर्टल के संपादक हैं )

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