PLACE-YOUR-ADVERT-HERE
add-banner
IMG-20231202-WA0031
IMG_20220718_112253
IMG-20250516-WA0020
IMG-20250516-WA0017
ग्वालियरताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़मध्य प्रदेश

हम खुशनसीब हैं कि संगीत सम्राट तानसेन की बारगाह में गाने का मौका मिला

सूफी गायक पद्मश्री उस्ताद पूरन चंद वडाली एवं लखविंदर वडाली से बातचीत

 

ग्वालियर। मियां तानसेन तो संगीत सम्राट थे, सुरों के बादशाह और कलंदर थे, हम तो उस महान हस्ती की पैरों की धूल भी नहीं। ये क्या कम खुशनसीबी है कि उनकी बारगाह में गाने का मौका मिला है। अजी हम बहुत किस्मत वाले हैं, जो मध्यप्रदेश की सरकार और डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर ने हमें ये मौका दिया है, हमारी तो वर्षों की आस पूरी हो गई। अब तो बाबा तानसेन से इतनी इल्तिज़ा है कि बस कल सुर सही से लग जाए..।

No Slide Found In Slider.

ये कहना है सूफी गायकी के सरताज़ पद्मश्री उस्ताद पूरन चंद वडाली और उनके सुपुत्र लखविंदर वडाली का। दोनों कल यहां हजीरा स्थित इंटक मैदान में तानसेन समारोह के तहत आयोजित पूर्वरंग कार्यक्रम गमक के तहत प्रस्तुति देने आए हैं।
आज शाम ग्वालियर आने के बाद उन्होंने अखबार वालों से बातचीत की और सिलसिलेवार सवालों के जवाब दिए। दरअसल, वडाली बंधुओं की जोड़ी हुआ करती थी, पूरन चंद और प्यारेलाल की जोड़ी। 2018 में ये जोड़ी टूट गई। छोटे भाई प्यारेलाल का निधन हो गया। तब से प्यारे लाल की जगह लखविंदर ने ले ली, जो पूरन चंद जी के बेटे हैं, और पंजाब सहित पूरे उत्तर भारत में सूफी गायकी का एक बड़ा नाम है। एक बात और खास है इन पिता पुत्रों की वो ये की दोनों ही किसी प्लानिंग या योजना से नहीं गाते, मंच पर पहुंचने के बाद कोई रूह उनके अंतस में प्रवेश कर जाती है और वही सिलसिलेवार उनसे कहती है कि अब ये गाओ अब वो गाओ और बस वे गाते चले जाते हैं।

बहरहाल, आज जब पिता पुत्र की ये जोड़ी मीडिया से मुखातिब हुई तो दोनों बेहद खुश थे। उनका कहना था कि ग्वालियर में वे पहले भी कई दफा आए हैं पर इस बार का आना खास है, हर कलाकार की चाहत होती है इस पवित्र जगह आने और गाने की। हमारी भी वर्षों से यहां आने की तमन्ना थी जो अब पूरी हो रही है। वे कहते हैं कि कल बाबा तानसेन का आशीर्वाद और कृपा रही तो कुछ अदभुत गाना होगा।
बुल्ले शाह , बाबा फरीद कबीर शाह हुसैन जैसे सूफियों के कलाम गाकर दुनिया में अमन और मोहब्बत का पैगाम बांटने वाले उस्ताद पूरन चंद वडाली का जीवन किसी सूफी से कम नहीं। बाहरी दुनिया की दौड़भाग से बेखबर वे तो बस सुर की साधना में लगे रहते हैं। मध्यप्रदेश से अपने रिश्ते का जिक्र करते हुए वे कहते है कि एमपी वालों ने बहुत प्यार दिया है। यहां की सरकार 1999 में हमें तुलसी सम्मान से नवाज चुकी है।

पहलवानी का था शौक, पिता गाने के लिए पीटते थे सो बाल ही कटवा दिए।
अपने शुरुआती दिनों के बारे में उस्ताद पूरन चंद वडाली बताते हैं कि उन्हें पहलवानी का शौक था। लेकिन पिता ठाकुरदास जो खुद गायक थे, चाहते थे कि मैं भी गायक बनूँ। वे इसके लिए जबरदस्ती करते थे। कभी कभी तो केश पकड़कर पीटते भी। ऐसे में मैंने बाल ही कटवा दिए। लेकिन बाद में समझ आई सो उनसे गाना सीखा। पटियाला घराने के पंडित दुर्गादास जी को गुरु बनाया उनसे भी सीखा। और जो कुछ सीखा वो सबके सामने है।

PicsArt_10-26-02.06.05

सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोविंद साहब जी के जन्मस्थल गुरु की वडाली में पैदा हुए पूरन चंद वडाली अपने छोटे भाई प्यारेलाल को बहुत मिस करते हैं। भावुक होते हुए वे कहते है कि कुछ साल पहले हम दोनों यहां मेले में गाने आए थे। अब वो नहीं है। पुरानी यादें ताज़ा करते हुए वे कहते हैं कि प्यारे मुझसे 13 साल छोटा था। मैंने ही उसे तैयार किया , फिर साथ साथ ही गाने लगे। हमारी जोड़ी खूब मक़बूल भी हुई। अब तो बस यादें ही रह गईं हैं।

पूरन चंद वडाली ने फिल्मों भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा है। लेकिन उन्हें मज़ा मंच के गाने में ही आता है। वे कहते हैं कि फ़िल्म का गाना सीमित है, उसमें उपज नही हो सकती। जबकि मंच पर श्रोताओं के सामने अंदर से खुद ब खुद नई चीजें निकलती हैं।

लखविंदर वडाली भी सूफी गायकी का बड़ा नाम है। उन्होंने कई फिल्मों में गाया है और कुछ पंजाबी फिल्मों में एक्टिंग भी की है। इनमें अँखियाँ उडीक दिया, और छेवा दरिया जैसी फिल्में प्रमुख हैं। उनके कई एलबम भी रिलीज हुई हैं। वे कहते है कि सूफी गायकी हमारी परंपरा है, अपने पिता के साथ वे इसे आगे बढ़ा रहे हैं। आज के दौर में बाबा बुल्ले शाह बाबा फरीद सुल्तान बाहु बारिस शाह जैसे सूफियों द्वारा जलाई गई अमन की जोत को सहेजकर रखने की जरूरत है, हमारे देश की भी इसकी जरूरत है।

Chief Editor JKA

FB_IMG_1657898474749
IMG-20250308-WA0007

Related Articles

Back to top button