ओबीसी बदल और बिगाड़ सकती है 2023 का राजनीतिक गणित

जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है राजनीति का मतलब भी बदलता जा रहा है । मध्य प्रदेश की राजनीति में अब पार्टियों का केंद्र जातियां हैं । मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में अब केवल आदिवासी वोट बैंक है क्योंकि आदिवासियों के लिए मुफ्त की योजना शिवराज सरकार ने चलाई तो खूब लेकिन आदिवासियों का वोट बैंक शिवराज को शायद ही मिला । इसीलिए ही तो चुन-चुन कर आदिवासी नेताओं के नाम पर स्मारकों और इमारतों का नामकरण किया जा रहा है और इतना ही नहीं मुख्यमंत्री राशन आपके द्वार जैसी योजना चलाकर आदिवासी वोट बैंक को अपनी तरफ ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है।
मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है और इस ज्वलंत आरक्षण की लड़ाई वाली आग में घी डालने का काम भी स्वयं सरकार ने पंचायत चुनाव में ओबीसी को ठेंगा दिखाकर किया है और जब ओबीसी अपने अधिकारों की मांग कर रही है तब मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार पुलिस को आगे करके ओबीसी आंदोलनों को दबाने की साजिश रच रही है । भोपाल में ओबीसी ने मुख्यमंत्री आवास घेराव करने की घोषणा की तो आदिवासी संगठन जयस और भीम आर्मी भी ओबीसी के साथ हो लिए । और ओबीसी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आरक्षण की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया और साथ हो ली मैदान में । ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा कांग्रेस को घेरती दिखाई देती है तो कांग्रेस भाजपा पर ओबीसी के साथ छलावा करने का आरोप लगाने से पीछे नहीं हटती । ओबीसी समाज भी है जान चुका है कि भाजपा और कांग्रेस की नूरा कुश्ती में पिछड़ा वर्ग समाज का नुकसान हो रहा है । ओबीसी समाज ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है और 27% आरक्षण नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव और मध्य प्रदेश सरकार में दी जाने वाली नौकरियों में जब तक लागू नहीं हो जाता तब तक लड़ाई सड़क से संसद तक जारी रहेगी । ओबीसी महासभा का कहना है कि ओबीसी वर्ग के सांसद , विधायक यदि समाज का साथ नहीं देते हैं तो आने वाले समय में इनका भी विरोध किया जाएगा । इस बात से एक बात तो तय है कि 2023 में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही ओबीसी से नुकसान होने की संभावना है । आजकल प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति पर फोकस सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं ।

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