हारने और जीतने वाले दोनों मंत्री, तो दावेदार क्या करेंगे

सूबे की एक विधानसभा सीट ऐसी है जो हमेशा ही राजनीति का केंद्र रही है । यहाँ प्रमुख पार्टियों के बड़े नेताओं की न केवल नजर रहती है बल्कि टिकिट वितरण में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते हैं । इस सीट का चर्चा में रहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहाँ चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं बल्कि जाति के आधार पर होता है । 2018 के विधानसभा चुनाव में यहाँ से कमल दल के दो बार के विधायक सजातीय वोट बैंक की बहुलता के बाद भी हाथ वाले नेताजी से चुनाव हार गए । दिलचस्प ये था कि दोनों ही नेता सजातीय थे । करीब डेढ़ साल बाद हाथ वाले विधायक जी ने अपने महाराज के हुक्म पर सत्ता के उलटफेर में पहली बार की विधायकी को तिलांजलि दे दी और हो गए कमलछाप । उपचुनाव में कमल दल ने इन नेताजी को जिताने में पूरी दम लगा दी और जीत भी गए, फिर महाराज ने बनवा दिया उनको मंत्री । हारने वाले सौम्य, सरल और सहज नेताजी के राजनैतिक भविष्य की समाप्ति के कयास राजनैतिक जनकारों ने लगाए लेकिन सरकार ने उन्हें अब निगम में उपाध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया ।
अब चर्चा है कि हारने वाले और जीतने वाले दोनों ही मंत्री हैं तो 2023 में टिकिट किसके भाग्य में लिखा है हारने वाले के या जीतने वाले के । यदि ये दोनों ही दावेदार हैं तो जो वर्षों से क्षेत्र की गली गली छान रहे हैं वे क्या करेंगे , क्या बगावत करेंगे या भितरघात । खबर तो ये भी है कि पंजा कमल दल में सेंधमारी कर 2018 का इतिहास दोहराएगा और सजातीय उम्मीदवार खड़े करेगा लेकिन हाथी की चाल भले ही धीमी ही सही लेकिन मंजिल पर पहुंचने से कुछ ही कदम पीछे रह जाता है ऐसे में हाथी को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है । दावेदार कब तक खोखली दावेदारी करते रहेंगे, कभी न कभी तो आरपार का फैसला लेना होगा और उसके दो ही रास्ते हैं एक बगावत और दूसरा भितरघात, अब देखना होगा कि आगे क्या होगा । हालांकि निगम वाले राज्यमंत्री का जो स्वागत हुआ है उससे उनके दिल मे भी 2023 के अरमान जाग्रत हुए होंगे कि जनता तो अब भी मेरी ही है और उनको शायद वे अब यही कहना चाह रहे होंगे कि देखो तुम्हारी जीत से ज्यादा मेरी हार के चर्चे हैं ।

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