उपेक्षा या अपेक्षा : गुना सांसद के कांग्रेस की ओर बढ़ते कदम

इंजी. वीरबल सिंह
राजनीति : ठीक समय पर अवसरों को पहचान ले वास्तव में वही सफल राजनेता बन पाता है । हर वक़्त सिद्धांतों की दुहाई देने वाले राजनेता निजहित को महत्व देते हुए कब किसे अलविदा कह दें और किसकी गोदी में बैठ जायें ये तो राजनैतिक पंडित भी पता नहीं लगा पाते हैं । कांग्रेस में रहकर राजनीति का ककहरा सीखने वाले और ज्योतिरादित्य सिंधिया के खासमखास सिपसलाहकर माने जाने वाले डॉ. के.पी. यादव ने 2018 में करीब 11000 दीवारों पर लिखवाया था कि “अबकी बार-सिंधिया सरकार” । 2018 में सरकार तो बनी लेकिन सिंधिया की नहीं बल्कि कांग्रेस की , और इससे न तो सिंधिया को कुछ मिला और न ही डॉ यादव को, 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस में खाली हाथ रह गए डॉ यादव ने भाजपा क्या जॉइन की ,लोकसभा चुनाव में अपने ही महाराजियत चर्चा एक लंबे अंतर से चुनाव हराकर मिट्टी में मिला दी । डॉ यादव देश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गए थे लेकिन खाली हाथ तो कांग्रेस में सिंधिया भी बैठे थे तो वक़्त की नजाकत को समझते हुए अवसरवादी नेता के रूप में मौके पर चौका मार भाजपाई हो गए ।
सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से ही राजनैतिक गलियारों में चर्चा थी कि गुना सांसद डॉ के पी यादव का क्या होगा, जिसका अंदेशा था वही हुआ । सिंधिया और यादव के दल मिल गए लेकिन दिल नहीं मिल सके । भले ही दोनों सार्वजनिक तौर पर बयान देते रहे कि हम पार्टी के कार्यकर्ता हैं लेकिन उसी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं ने लगातार सांसद यादव को न केवल हाशिए पर ला दिया बल्कि कार्यक्रमों से लेकर पार्टी बैनर में उनकी उपेक्षा की जाने लगी । चर्चा तो उसी दिन से चर्चित थी कि अपने राजनैतिक कैरियर को बचाने घर वापिसी यानी कि कांग्रेस की ओर रुख कर सकते हैं । भाजपा में उपेक्षित से महसूस कर रहे डॉ यादव ने दो पेज का लंबा सा पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नाम लिखकर सिंधिया समर्थकों द्वारा उनकी हो रही उपेक्षा की शिकायत करना और फिर पत्र को मीडिया और सोशल मीडिया में वायरल कराना कांग्रेस की ओर बढ़ते कदम ही बताए जा रहे हैं । यह सत्य भी है कि सिंधिया के भाजपा में आ जाने से अब डॉ केपी यादव का राजनैतिक कैरियर ज्यादा लंबा दिखाई नहीं देता है और कांग्रेस भी यही चाहेगी कि डॉ केपी यादव की घर वापिसी भी हो और लोकसभा चुनाव के रण में एक बार फिर यादव हाथ के सहारे महाराज की महाराजियत की फजीहत करे लेकिन ये भविष्य के गर्त में है देखना होगा क्या होगा,फिलहाल तो सांसद महोदय की उपेक्षा ही हो रही है ।

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