शिक्षा विभाग : अजब म.प्र. की गजब कहानी, एक विभाग, दो नियम
◆ डबल डिग्री के अस्पष्ट नियमों की आड़ में DPI कर रहा है अभ्यर्थियों के जीवन से खिलवाड़ ◆ डबल डिग्री के नाम पर उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती 2018 के पात्र अभ्यर्थियों के साथ हो रहा है अन्याय ◆ DPI के अधिकारी शिक्षामंत्री के आश्वासन की उड़ा रहे हैं धज्जियां

मध्यप्रदेश में हमेशा ही अजब और गजब कार्य होते हैं । यहाँ के सरकारी विभागों को अक्सर विवादों में देखा जा सकता है और इतना ही खुद के बनाए नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए इन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता है । एक विभाग में दो – दो नियम बनाकर अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की फितरत अब मध्यप्रदेश लोक शिक्षण संचालनालय की बन गई है । जानकारी के मुताबिक लोक शिक्षण संचालनालय की खामी को भुगत रहे, डबल डिग्री नाम की भयंकर समस्या से पीड़ित अभ्यर्थी जब राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री माननीय इंदर सिंह परमार से मिले तो मंत्री जी ने साफ कहा था की एक रेगुलर और एक प्राइवेट डिग्री बालों को मान्य किया जाएगा, लेकिन DPI के जिम्मेदार अधिकारी उड़ा रहे हैं मंत्री जी के आश्वासन की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं और लगातार एक रेगुलर और एक प्राइवेट डिग्री वाले पात्र अभ्यर्थियों का शोषण कर रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश में पूर्व में हुई शिक्षक भर्ती 2005, 2008 और 2011 की भर्ती में भी एक साथ दो डिग्री वाले अभ्यर्थियों को न केवल मान्य किया गया था बल्कि उन्हें नौकरी के लिए पात्र मानकर नौकरी भी दी और इन्ही डिग्रियों के आधार पर 2018 में इन्हीं अभ्यर्थियों का शिक्षा विभाग में संविलियन भी किया गया है । इतना ही नहीं राज्य शिक्षा केंद्र की लेखापाल की भर्ती परीक्षा 2017 में भी UGC के 2012 निमानुशार ऐसे ही डिग्री धारी अभ्यर्थियों को पात्र माना था।
उक्त मामले में UGC की एक समिति ने 2012 में एक नियमित डिग्री के साथ एक और अतिरिक्त डिग्री अन्य किसी माध्यम से करने की अनुशंसा की थी और इस अनुशंसा को UGC ने 2013 में पारित भी किया था। इसलिए विद्यार्थियों ने इस प्रकार से डिग्री की थीं , वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश सरकार लगातार इस तरह के अभ्यर्थियों को नौकरी प्रदान कर इस प्रकार डिग्री करने को प्रोत्साहन दे रही थी। इतना सब कुछ होने के बाद अब अचानक से जब भर्ती की प्रक्रिया 80% पूरी हो चुकी है उसके बाद अभ्यर्थियों के साथ इस तरह के अनावश्यक नियमों का हवाला देकर नौकरी से वंचित रखकर उनके भविष्य के साथ अन्याय करना ठीक नहीं है। DPI अभ्यर्थियों को अपात्र करने के लिए UGC की 2016की सार्वजनिक सूचना का हवाला दे रही है , वह सूचना 2016 से पहले की हुई डिग्रियों पर कैसे लागू होगी , यह तो शोध का विषय है।
अजब मध्यप्रदेश के गजब नियमों पर सरकार और उनका विभाग चुप्पी साधे हुए है । इस प्रकार के दोहरे नियम बनाकर एक तरफ सरकार बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की बात कहकर खुद ही अपनी पीठ तो थपथपा रही है लेकिन इन्हीं गलत नियमों की आड़ में पात्र अभ्यर्थियों को पात्रता से बाहर कर उनकी पीठ में छुरा घोंपने का काम भी कर रहे हैं । शिक्षा मंत्री के वादे खोखले साबित तो होही रहे हैं वहीं जिम्मेदार अधिकारी उक्त मामले को संज्ञान में होकर भी सुधार नहीं कर रहे हैं। इस तरह के प्रकरण न केवल प्रदेश के प्रतिभाशाली युवाओं का भविष्य चौपट कर रहे हैं बल्कि जनता के बीच सरकार की किरकिरी भी करा रहे हैं ।

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