जयारोग्य की सुधि कौन और कब लेगा

ग्वालियर : कोरोना से अभी पूरी तरह बाहर निकल नहीं पाए थे कि डेंगू का कहर इस कदर बरप पड़ा कि शिशु रोग विभाग में जयारोग्य से लेकर राजधानी के हमीदिया अस्पताल तक मे एक ही बेड पर दो से तीन बच्चों को लिटाना पैड रहा है । सरकार को जनता से अधिक चुनाव की चिंता है, और चुनाव में ही व्यस्त है।
किसी भी संस्थान का सुचारू रूप से संचालन उसके मुखिया के हाथ में होता है फिर चाहे संस्थान सरकारी हो या निजी । प्रदेश का सबसे पुराना गजराराजा मेडिकल कॉलेज से संबंधित जयारोग्य अस्पताल समूह अंचल का सबसे बड़ा अस्पताल है, यहाँ न केवल आसपास के जिलों से मरीज आते हैं बल्कि सीमावर्ती राज्यों से भी बड़ी तादात में मरीज आते हैं । जयारोग्य में प्रशासनिक अधिकारियों को अस्पताल के बेहतरीन संचालन के लिए जिम्मेदारी सरकार ने सौंपी, पूरे कोरोना में डॉक्टर, नर्सेस और पैरामेडिकल स्टाफ पूरे समर्पण भाव से जनता की सेवा करने में जुटे रहे, उनकी कोशिश थी कि किसी प्रकार की जनहानि न हो । मेडिकल कॉलेज के साहब का ध्यान जयारोग्य अस्पताल समूह और मेडिकल कॉलेज से कहीं अधिक अपने निजी अस्पताल पर है, सवाल यह है कि क्या ये संभव है कि एक डॉ जिनका खुद का करीब 150 बिस्तर का अस्पताल हो वो पूरे समर्पित भाव से अपनी सेवाएं सरकारी अस्पताल में दे पाएगा । कोरोना काल से अब तक डेंगू के कहर में साहब की लापरवाही साफ तौर पर दिखाई देती है । वर्तमान में डेंगू का कहर इस कदर बरप रहा है कि पीडियाट्रिक विभाग में बेड कम पड़ रहे हैं लेकिन जिम्मेदार साहब को कोई परवाह नहीं । सवाल तो संभागीय आयुक्त की कार्यप्रणाली पर भी उठता है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए कितनी बार अस्पताल का निरीक्षण किया, कितनी बार अस्पताल प्रबंधन के साथ बैठक कर संसाधनों की आपूर्ति के लिए कोशिश की । अधीक्षक को लगातार न केवल अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते हुए देख रहे हैं बल्कि वे अपनी सेवाएं भी दे रहे हैं, इसके बावजूद क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों द्वारा उनका सहयोग करने की बजाय आए दिन अस्पताल पहुंचकर समस्याओं पर सार्थक चर्चा न करने की बजाय बेबुनियाद का बखेड़ा खड़ा कर मीडिया में चर्चा में बने रहकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे हैं ।

Subscribe to my channel



