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विपक्ष से अब विकल्प बनने के पथ पर सिंधिया

इंजी. वीरबल सिंह

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केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश सरकार की ओर से भोपाल में आवास मिल चुका है । इसके लिए सिंधिया ने परिवार सहित पूरे विधि विधान से गृह प्रवेश कार्यक्रम किया, सिंधिया का नया आवास भोपाल के राजनैतिक केंद्र श्यामला हिल्स पर है । उनके आवास की दूरी सीएम हाउस से महज तीन मिनट की है और ठीक बगल में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का निवास है । मंत्री, सांसद और मुख्यमंत्री को आवास ( बंगला ) मिलना कोई नई बात नहीं है और न ही राजनीतिक इतिहास में पहली बार मिल रहा है लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को भोपाल में आवास आवंटित होना कई मायनों में खास माना जा रहा है । पहला तो ये कि राजपथ से लोकपथ पर चलने वाले सिंधिया अपने परिवार के पहले व्यक्ति हैं जिनका भोपाल में भी आवास रहेगा, इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया का आवास था लेकिन उस आवास में उनका निवास नहीं रहा और पिता माधव राव सिंधिया दिल्ली और ग्वालियर से ही भोपाल की राजनीति करते रहे । सिंधिया जब कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री थे तब भी शिवराज सरकार से बंगले की माँग की थी लेकिन तब शिवराज सरकार ने विपक्ष के सिंधिया की बात पर गौर नहीं किया । 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद भी सिंधिया ने कमलनाथ सरकार से बंगले की माँग रखी लेकिन कमलनाथ ने सिंधिया की जगह अपने पुत्र को तवज्जों दी । भोपाल में आवास मिलने के बाद राजनीतिक गलियारों में तमाम तरह की चर्चा है कि अब एक बार फिर महाराज लोकपथ से राजपथ पर हैं क्योंकि सिंधिया के आवास को ऊँचे दरवाजे की खासियत के साथ शाही आवरण में ढाला गया है और बाहर दरवाजे पर प्रकाश बिंदुओं के नीचे सरि-सर्प भी लटके हैं जो सिंधिया के राजचिन्ह का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

जगजाहिर है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भरपूर तवज्जों दे रही भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश में चौथी बार सत्ता पर आसीन है तो वो सिंधिया के रहमोकरम से ही है ऐसे में सिंधिया की हर बात मान लेना भाजपा की मजबूरी है । राजनैतिक पंडित बताते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया पूर्व में भाजपा के लिए विपक्ष थे और 2018 का आम विधानसभा चुनाव पूरी तरह से “महाराज वनाम शिवराज” लड़ा गया था लेकिन अब चूँकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी परिवार का न केवल हिस्सा हैं बल्कि केंद्र की मोदी सरकार में नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित भाजपा के मुखिया जेपी नड्डा के करीबी लोगों में गिने जाने लगे हैं बल्कि अब उनकी पहुँच आरएसएस के नागपुर कार्यालय तक भी है इसलिए चर्चा यह भी है कि अब सिंधिया भाजपा के लिए विपक्ष नहीं बल्कि सूबे में विकल्प बन रहे हैं और बनें भी क्यों नहीं ?
पाँव- पाँव वाले भैया से श्रवण कुमार और जगत मामा बनने की ख्याति प्राप्त शिवराज सिंह चौहान की स्वीकार्यता अपनी ही पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की आंखों में गड़ने सा लगा है, अब केंद्र में अपने नम्बर बढ़ाने के लिए शिवराज सिंह ने बुलडोजर का सहारा लिया तो शिवराजसिंह चौहान के बुल्डोजर मामा वाले अवतार को जनता ने पसंद नहीं किया है,और तमाम हाथ पैर मारने के बावजूद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है, केंद्र की राजनीति में रम चुके और मोदी की किचन कैबिनेट का हिस्सा बन चुके नरेंद्र सिंह तोमर जी की दिलचस्पी मध्यप्रदेश की राजनीति में कम ही देखने को मिलती है, इतना ही नहीं सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से भाजपा की राजनीति का ग्वालियर में सत्ता केंद्र रहे तोमर के लिए जयविलास पैलेस ने दखल डाल दिया । कैलाश विजयवर्गीय से हाई कमान की नाराजगी और क्षेत्र में किसी अन्य को आगे बढ़ने न देने की सिंधिया परिवार की पुरानी नीति के कारण नरोत्तम मिश्रा सीएम पद की रेस से बाहर हो चुके हैं,इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया अब विकल्प ही हैं और उन पर दांव लगाना भाजपा की मजबूरी है, लेकिन प्रदेश की राजनीति में मजबूती से पैर जमाने के लिए सिंधिया को मूल भाजपाइयों सहित कांग्रेस के नेताओं से भी मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा । सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में शामिल होने के बाद से भारतीय जनता पार्टी का एक धड़ा कटा हुआ महसूस कर रहा है, जिस तरह ग्वालियर में, पुरानी भाजपा और सिंधिया जी की नई भाजपा के रूप में, भारतीय जनता पार्टी साफ तौर पर दो खेमों में बंट चुकी है, यदि ऐसी ही टूट फूट प्रदेश स्तर तक हो गई तो सिंधिया जी की राह आसान नहीं रह जाएगी ।

यदि 2023 में “महाराज वनाम कमलनाथ” हो भी जाए तो कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी क्योंकि फिलहाल समीकरण तो उस ओर ही इशारा कर रहे हैं और फिर भविष्य के गर्भ किसने झाँककर देखा है । रियासत से सियासत में आने वाले सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई ऐसे वाकये जुड़ रहे हैं जो अनूठे हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद केंद्र में दूसरी बार मोदी सरकार बनने की चर्चा का केंद्र के बाद सबसे अधिक चर्चा में रहे , सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर अपनी दादी की तरह दोहराया, और झाँसी की रानी के संदर्भ में जिस प्रकार से सिंधिया परिवार की छवि रही उस कलंक को धोने के प्रयास में सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया इकलौते सदस्य हैं जिन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाकर शीश झुकाया । रियासत में महाराजा रहे सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य अभी अभी तक मध्यप्रदेश की राजनीति यानी सियासत में राजा नहीं बना लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाते हैं तो यह एक नया अध्याय होगा ।
विपक्ष के लिए मुख्य केंद्र अब सिंधिया ही है, कांग्रेस के लिए चुनौती भाजपा नहीं है बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ही है और भाजपा के लिए सिंधिया अब जरूरत बन गए हैं क्योंकि सत्ता में सिंधिया समर्थकों की हिस्सेदारी तो है ही संगठन में भी सिंधिया समर्थक हैं, इसके अलावा भाजपा में उपेक्षित वर्ग अब सिंधिया की उंगली पकड़कर अपनी राजनैतिक वैतरणी पार करना चाहते हैं, साथ ही शिवराज के बाद कौन वाले सवाल के जबाव में प्रदेश भाजपा के नेता पहले मैं, पहले मैं की लड़ाई में भाजपा का बेड़ा गर्त में डाल सकते हैं ऐसे में सिंधिया ही विकल्प हैं और तो और शिवराज सिंह के उत्तराधिकारी की लड़ाई के योद्धाओं के लिए भी सिंधिया सहज स्वीकार्य हैं । अभी तो मीडिया के लिए सिंधिया को बंगला मिलना सुर्खियां हैं तो हम जैसे पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उनके राजनैतिक भविष्य के गुणा भाग करते हुए शब्द, पक्ष के लिए विकल्प तो विपक्ष के लिए कितना चुनौतीपूर्ण होंगे सिंधिया ये आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन फिलहाल तो सिंधिया रियासत और सियासत ( पक्ष में और विपक्ष में भी ) के विरोधी राजा साहब के पास में ही आ गए हैं, यदि भाजपा ने विकल्प के तौर पर सिंधिया को चुना तो अब सीएम हाउस की दूरी उनके B-5 निवास से अधिक नहीं है ।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और वेब पोर्टल के संपादक हैं

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Chief Editor JKA

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