मनरेगा और पंचायत की रीढ़ है ग्राम रोजगार सहायक

( सूरज प्रजापति )
मनरेगा योजना की शुरुआत केंद्र सरकार ने 2 अक्टूबर 2005 को कर दी थी, इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम के अंतर्गत रखा गया था | इस योजना की शुरुआत करने का सरकार का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने का था | इसके बाद इस योजना के नाम में बदलाव करने पर विचार – विमर्श किया गया और फिर 31 दिसंबर 2009 को इस योजना का नाम महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना कर दिया गया था .मनरेगा योजना में शामिल होने वाले ग्रामीण लोगों को उनके ही परिवेश में रोजगार प्रदान किया जाता है, इस योजना को आगे तक चलाने के लिए केंद्र सरकार ने इसके अंतर्गत 100 कार्य दिवस के रोजगार की गारंटी दी है | इस योजना के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान बैंक, डाकघर के बचत खातों के माध्यम से किया जाता है, इसके साथ ही आवश्यकता अनुसार आप नगद भुगतान (nrega payment process) की व्यस्था विशेष अनुमति लेकर भी कर सकते है इस योजना के माध्यम से परिवार के वयस्क सदस्य के द्वारा आवेदन किया जाता है, इसके बाद जिन लोगों ने इसके लिए आवेदन किया हैं, उन्हें 15 दिन के अंदर रोजगार प्रदान किया जाता है, और यदि किसी कारणवश 15 दिन के अंदर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है, तो सरकार के द्वारा उसे बेरोजगारी भत्ता भी दिया जाता है, यह भत्ता पहले 30 दिन का एक चौथाई प्रदान किया जाता है और फिर 30 दिन के बाद यह न्यूनतम मजदूरी दर का पचास प्रतिशत प्राप्त होता है |भारत में अधिकतर ऐसे लोग रहते है, जो अपना जीवन ग्रामीण क्षेत्रों में व्यतीत कर रहें है, जहाँ पर उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वहां पर उन्हें पूर्ण रूप से रोजगार नहीं प्राप्त हो पाता है | इसलिए अधिकतर ग्रामीण जनसख्यां रोजगार के लिए शहर की ओर पलायन कर रही है | इसी तरह की समस्याओं का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए मनरेगा योजना की शुरुआत कर दी | इस योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को कई तरह की सुविधाएं प्रदान की जाएगी, जिससे उनकी कुछ समस्याओं का समाधान किया जा सके|
अब इस योजना के विस्तार के बाद योजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों की आवश्यकता थी,जिसके फलस्वरूप सन 2008 में अति पिछड़े क्षेत्रो मे ग्राम रोजगार सहायक की भर्ती अंशकालिक संविदा रूप में की गई ,कुछ राज्यो में जैसे मध्यप्रदेश में 2012 में ग्राम पंचायतों में एक पढ़े लिखे ग्रेजुएट कम्प्यूटर में दक्ष युवा को ग्राम रोजगार सहायक की भर्ती रूप में 3200 रुपए के अल्प मानदेय के रूप में की गई थी ,जिसमे उनका टारगेट न्यूनतम 10 लाख रुपए एक वित्तीय वर्ष में खर्च करना होता था,,जिसे जॉबकार्डधारी को 100 दिवस का रोजगार उपलब्ध कराना होता है, केंद्र एवं राज्य शाशन की समस्त विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने वाले ग्राम रोजगार सहायक ग्राम पंचायत के विभिन्न कार्यो को संचालित करते है ।किंतु सरकार की भेदभावपूर्ण नीति आज ग्राम रोजगार सहायक दुःखी है ,मनरेगा कर्मी और ग्राम रोजगार सहायक में भेदभाव राज्य सरकार और केंद्र सरकार के द्वारा किया जा रहा है ,केंद्र सरकार मनरेगा योजना के संचालन के लिए बजट निर्धारित करती है लेकिन इन ग्राम रोजगार सहायक के लिये कोई मानदेय निर्धारण नही है,क्योंकि केंद्र सरकार ने राज्य शाशन के हवाले कर इन कर्मचारियों से अपना पल्ला झाड़ लिया है ,सभी अलग अलग राज्य में भिन्न भिन्न मानदेय इन ग्राम रोजगार सहायकों को दिया जा रहा है ,,हिमाचल प्रदेश में ग्राम रोजगार सहायकों को राज्य शाशन द्वारा नियमित कर 40000 रुपए का वेतन प्रदान किया जा रहा है और राजस्थान में उन्हें कनिष्ठ लिपिक के पद पर समायोजित राजस्थान सरकार ने कर दिया था ,कुछ राज्यो में इंक्रीमेंट प्रति बर्ष दिया जाता है ।लेकिंन मध्यप्रदेश में सबसे अल्प मानदेय 9000 रुपए ग्राम रोजगार सहायकों को दिया जाता है ।
ग्राम रोजगार सहायक शाशन की प्रत्येक योजना को जन जन तक पहुंचाता है इससे उसका जमीनी जुड़ाव सीधे सीधे ग्रामीणों से रहता है , योजनाएं जैसे मनरेगा के सफल क्रियान्वयन के अलावा स्वच्छ भारत मिशन ,प्रधानमंत्री आवास ,पेंशन योजना, ग्रामसभाएं, bpl योजना ,gpdp योजना, जियोटैग्गिंग ,सहित 50 से अधिक योजनाओं और शाशन की विभिन्न योजनाओं का सफल क्रियान्वयन भी किया जा रहा है अपितु इन योजनाओं का अतिरिक मानदेय भी इस शोषित ग्राम रोजगार सहायकों को नही दिया जाता ,इसके उपरांत मध्यप्रदेश को हर योजना में भारत में प्रथम शीर्ष के पायदान पर पहुंचाया है ।ये कहना अतिश्योक्ति नही होगी ,की ग्राम रोजगार सहायक की गांव गांव में कोने कोने में पकड़ है हर ग्रामवासी की मदद और योजनाओं का लाभ पात्र हितग्राहियों को दिलाते रहते है।
लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि कई वर्ष बीत जाने पर इन ग्रेजुएट डिप्लोमाधारी डिग्री धारी ग्राम रोजगार सहायकों को अपने अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य में उलझकर रह गए है ,राज्य शाशन केंद्र सरकार पर इन कर्मचारियों के बोझ को पटक देता है और केंद्र सरकार राज्य शाशन का कर्मचारी बताकर अपना पल्ला झाड़ देता है ।कई वर्षो से अपने अधिकारो के लिए आंदोलन करते आ रहे है लेकिन इनके आंदोलनों को अनसुना कर दिया जाता है आज भी शोषण का जीवन निर्वाह कर रहे है।
भारत देश मे एक तरफ सांसदों और विधायकों को लाखोंमें वेतन और महंगाई भत्ते भी दिए जाते है अन्य नियमित कर्मचारियों को भी महंगाई भत्तों के साथ अन्य भत्ते भी दिए जाते है लेकिन ये ग्राम रोजगार सहायक संविदा रूपी दंश से प्रताड़ित हो रहे है।
लेकिन शाशन के उच्च पदों पर बैठने वाले अधिकारियों को ये मंथन करना होगा कि आखिर कब तक कम वेतन और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कैसे ग्राम रोजगार सहायक कार्य करेगा।अधिकारो का शोषण सरकार की विफलता की श्रेणी में दर्शाता है,क्योंकि ग्रामीण स्वरूप बदलने में जितना योगदान सरकार की योजनाओं का है उतना ही ईमानदार और सार्थक प्रयास ग्राम रोजगार सहायकों द्वारा किया जा रहा है। कम वेतन पर भी कुशलता के साथ उत्कृष्ट कार्यो का संपादन करने वाले ग्राम रोजगार सहायकों को भी उचित बुनियादि अधिकार मिलने चाहिए,।यह सरकार का दायित्व है कि उसके अधिकारी और कर्मचारि निराश न हो।
( लेखक ग्राम रोजगार सहायक है )

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