तो इस बार भी नहीं मिलेगा संजय को टिकिट ? ये है कारण..

मुरैना जिले की जौरा विधानसभा सीट का शायद ही ऐसा कोई गाँव बचा होगा जहाँ संजय सिंह यादव न पहुँचे हों, जौरा तो छोड़िए जौरा से लगे विजयपुर और सबलगढ़ विधानसभा क्षेत्र के कुछ गांवों में भी संजय सिंह कई बार जनसंपर्क कर आए हैं । क्षेत्र से बुलावा आए और संजय सिंह वहाँ न पहुँचे ये नामुमकिन सा लगता है फिर चाहे शोक संतृप्त परिवारों को सांत्वना देना हो या फिर किसी धार्मिक अनुष्ठान से लेकर विवाह समारोह, पार्टी की गतिविधियों में वे लगातार बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं । अपनी ग्रह विधानसभा भितरवार से कहीं अधिक अब वे जौरा में लोकप्रिय हो गए हैं, संजय सिंह यादव कमलनाथ सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और भितरवार विधायक लाखन सिंह यादव के भतीजे हैं । युवा कांग्रेस में लोकसभा महासचिव और अध्यक्ष पद पर रहते हुए युवाओं को पार्टी से जोड़ने का काम संजय सिंह ने बड़ी निष्ठा से किया । राष्ट्रीय महासचिव के रूप में कार्य करते हुए राहुल गांधी से नजदीकियां किसी से छुपी नहीं है और वे वर्तमान में मध्यप्रदेश युवा कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर हैं ।
जौरा में अपनी राजनीतिक बिसात बिछा रहे संजय सिंह यादव को लगता है इस बार भी विधानसभा टिकिट न मिलने से निराश होना पड़ सकता है । दरअसल राजस्थान के उदयपुर में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में कई बदलाव किए गए हैं। सबसे बड़ा बदलाव परिवारवाद को लेकर हुआ है, अब कांग्रेस में भी यह तय किया गया है कि एक परिवार के एक ही सदस्य को चुनाव में टिकट दिया जाएगा । देश की सबसे पुरानी पार्टी में इतने बड़े बदलाव का असर देश की सियासत में देखने को जरूर मिलेगा । कांग्रेस पार्टी में लागू हुए इस फैसले का असर मध्य प्रदेश में भी देखने को मिल सकता है । इस बदलाव का असर संजय सिंह के कैरियर पर पड़ने वाला है क्योंकि संजय सिंह पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव के भतीजे हैं और लाखन सिंह ग्वालियर अंचल के कद्दावर कांग्रेस नेताओं में शामिल हैं । सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद लाखन सिंह का कद और भी बढ़ गया है और 2023 में एक बार फिर उनको टिकिट मिलना तय है । एक परिवार- एक टिकिट के फार्मूले में संजय सिंह का टिकिट कट सकता है ।
इन नेताओं का परिवार राजनीति में सक्रिए
कांग्रेस की चिंतन बैठक में ”वन फैमिली वन टिकट” का फैसला बताता है कि कांग्रेस अब भाजपा से सीख लेकर परिवारवाद से ऊपर उठने की तैयारी में है, लेकिन इस फैसले ने एमपी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की चिंता बढ़ा दी है । क्योंकि परिवारवाद के मकड़ जाल में उलझे कांग्रेस नेताओं और उनके परिवार के लोगों पर आगामी चुनाव लड़ने पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं।. मध्य प्रदेश में कांग्रेस में कई नेताओं के परिवार राजनीति में सक्रिए हैं, जिनकी तीसरी पीढ़ी तक राजनीति में हैं ।
● पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ विधायक हैं और उनके बेटे नकुलनाथ सांसद हैं ।
● पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह राज्य सभा सांसद है, तो उनके बेटे जयवर्धन और भाई लक्ष्मण सिंह विधायक हैं ।
● पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया विधायक हैं उनके बेटे विक्रांत विधायक का चुनाव 2018 में हार चुके है, फिलहाल यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं ।
● पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव 2018 में विधानसभा चुनाव लड़े हार गए थे, उनके भाई सचिन विधायक हैं ।
इनका कहना है
एमपी में नेताओं के पुत्र और भाई जो विधायक बने हैं वह परिवारवाद की श्रेणी में नहीं आते । क्योंकि कांग्रेस में यह तय किया गया है कि पहले पांच साल पार्टी के लिए काम करने पड़ेगा उसके बाद ही टिकट के लिए दावेदारी की जा सकती है । ऐसे में प्रदेश में जो नेता सक्रिए हैं वह पिछले पांच साल से भी ज्यादा समय से पार्टी में सक्रिए हैं, इसलिए वह परिवारवाद की श्रेणी में नहीं आते हैं ।
पीसी शर्मा , पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक

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