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निर्विरोध के नाम पर धनबल का चलन लोकतंत्र के लिए है गलत

मध्यप्रदेश में चुनावी सरगर्मी बारिश के मौसम की उमस से भी कहीं अधिक है । एक तरफ बोवनी का समय है तो किसान सोच समझकर खेत में बीज डाल रहा है तो वहीं मतदाता भी जनप्रतिनिधियों को ठीक से परखना चाहता है । चुनावी माहौल में गाँव में मतभेद और मनभेद न हों इसलिए शिवराज सरकार ने समरस पंचायत की घोषणा की । लेकिन समरस पंचायत के नाम पर निर्विरोध चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि क्या वास्तव में समरस पंचायत बनाने के लिए प्रतिबद्ध होंगे । समरस पंचायत में चुने जाने वाली सरपंच क्या वास्तव में जनता की सहमति से चुने गए हैं या फिर धनबल और बाहुबल के आधार पर । मेरे विरोध के नाम पर धनबल का बढ़ता चलन एक अच्छे जनप्रतिनिधि को नहीं चल पाएगा और यह चलन लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भविष्य में गलत साबित होगा ।

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निर्विरोध के नाम पर धनबल और बाहुबल का बढ़ता दखल

भले ही सरकार समरस पंचायत बनाने के लिए निर्विरोध जनप्रतिनिधि चुनने के लिए प्रयास कर रहे हो लेकिन वास्तविकता में हकीकत यह है कि जो भी पंचायत समरस पंचायत बनी है वह जनता से उनका जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार छीन रहे हैं । जनता के बीच कोई आम आदमी निर्विरोध चुनकर नहीं आ रहा है बल्कि धन कुबेर और बाहुबलियों का दखल राजनीति में बढ़ रहा है और उन्हीं के द्वारा जनप्रतिनिधि की कुर्सी को हथिया लिया जा रहा है । इस प्रकार से चुनाव यानी अपना जनप्रतिनिधि खुद चुनने का अधिकार है उसे धीरे-धीरे जनता से छीन लिया जा रहा है । यही चलन चलता रहा तो जनप्रतिनिधि या तो धनकुबेर होंगे या फिर बाहुबली । जनता के साथ पिछले कार्यकाल में कोई गलत कार्य और भविष्य की कार्य योजना की चिंता के आधार पर जनप्रतिनिधि चुनने की परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी ।

मप्र में पंचायत चुनाव के पहले चरण में जनता ने गुस्सा जाहिर कर दिया है। अधिकांश पंचायतों में जनप्रतिनिधि बदल गए हैं तो कुछ तगड़ी टक्कर के बाद जीत पाए हैं। दरअसल, जनता सरकार की खामियों से परेशान है, महंगाई, बेरोजगारी, माफियाराज, सरकारी दफ्तरों में कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार और सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार से परेशान जनता की गुस्सा पंचायतों चुनावों में साफ नजर आ रही है । लोगों में मतदान के के प्रति उत्साह है और ज्यादा मतदान करना चाहती थी। वह ऐसे जनप्रतिनिधि को चुनाव जिताना चाहती थी, जो उनका ध्यान रखे, कोई काम आ सके। लेकिन सरकार की नाकामियों का खामियाजा सरपंच पद के उम्मीदवारों ने उठाया, जनता का गुस्सा उन्हें चुनाव में पराजय के रूप में देखने का मिला ।अब पंचायत चुनावों में हुए उलटफेर से एक बात तो सामने आ गई कि जनता नेताओं के काम से खुश नहीं, नेता भी समझ चुके हैं कि जनता अब बातों से नहीं, बल्कि विकास के काम से खुश होगा, जनता जाति-धर्म से ज्यादा अच्छी शिक्षा, सड़कें, अस्पताल, बिजली-साफ पानी, साफ-सफाई आदि मूलभूत सुविधाएं चाहती है, लेकिन गांवों में मिलीभगत का राज चल रहा है। नेता, सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक और उनसे बड़े
अधिकारी सरकारी योजनाओं में घाल मेल कर कमाई करने में जुटे हैं, खेत, कुआं, तालाब, पीएम आवास आदि योजनाओं में सबने मिलकर कमीशनबाजी की। जनता का इन योजनाओं का लाभ बगैर कमीशन दिए नहीं मिल पाया है। ऐसे में जनता में नाराजगी थी, और वो प्रथम चरण में ग्राम पंचायत के घुनाव परिणामों में साफ नजर आया। जनता सच लेकिन उतह से मतदान करके जनता यह दिखा भी रही है, लेकिन दूसरी ओर सीएम सिंह चौहान ने इस बार जनता से गुस्सा होने और गड़बड़ियों का विरोध करने का हक भी छीन लिया । दरअसल, सीएम ने समरस पंचायतों में निर्विरोध जनप्रतिनिधि चुने जाने पर इनाम की घोषणा की है। मुख्यमंत्री निर्विरोध चुने जाने पर वहां के दिग्गजों के बधाई दे रहे हैं। लेकिन, जनता कह रही है कि भ्रष्टाचार को दबाने, जनता चुनावों में अपनी पीड़ा जाहिर नहीं कर सके, इसके लिए ऐसा किया गया है।

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Chief Editor JKA

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