मध्यप्रदेश : महाराज वनाम शिवराज ……
ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय की मुलाकात के बाद प्रदेश की राजनीति में कयासों के दौर जारी

इंजी. वीरबल सिंह
मध्य प्रदेश भी अजब है और इसकी राजनीति भी गजब है । यहां के सियासी गलियारे सदा ही गरम महसूस होते हैं । कयासों के बाढ़ आती रहती है चाहे फिर पक्ष – विपक्ष के बीच की तल्ख़ियां हों या आरोप-प्रत्यारोप की खबरें । या फिर अपने ही दल के अंदर खाने में मची खींचतान मीडिया की सुर्खियां बन कर राजनीतिक सरगर्मियां को तेज कर देती हैं । अभी हाल ही में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के दौरे पर आए तो इंदौर प्रवास के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात करने उनके निवास पर पहुंच गए हालांकि दोनों इस मुलाकात को एक सौजन्य मुलाकात बता रहे हैं लेकिन राजनीतिक पंडितों के लिए कयास तो मीडिया के लिए एक ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर तैयार हो गई ।
“महाराज वनाम शिवराज” का नारा तो 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने दिया था “माफ करो महाराज – हमारा नेता शिवराज” का नारा खूब चर्चा में था लेकिन तब महाराज यानी ग्वालियर की सिंधिया रियासत के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे और शिवराज सिंह चौहान के पास मध्य प्रदेश की सत्ता की कमान । इस मुकाबले में मामा कांग्रेस से चुनाव की बाजी हार गए लेकिन बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए । महाराज बनाम शिवराज का नारा अब अलग-अलग राजनीतिक दलों की तरफ से नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी में दिखाई दे रहा है । दरअसल चर्चा है कि यदि मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है । दरअसल खबर अब यह चल रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कैलाश विजयवर्गीय की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना चाहते हैं और यही एक कारण है कि इस सौजन्य मुलाकात से प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान चौकन्ने हो गए हैं । हालांकि शिवराज सिंह चौहान का विकल्प पार्टी के पास भी नहीं है , शिवराज सिंह चौहान लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं । वे अपने पूरे 17 साल कार्यकाल के कर चुके हैं और यदि उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा तो अपने 18 साल भी पूरा कर लेंगे ।
कहने को तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री के साथ-साथ इस्पात मंत्रालय का प्रभार भी संभाले हुए हैं लेकिन आजकल उनका दिल दिल्ली में कम और भोपाल में ज्यादा है , इसीलिए उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार से लगातार भोपाल में बंगले की मांग की थी जिसे वह कमलनाथ सरकार में पूरा नहीं कर सके तो अब शिवराज सरकार ने बंगला श्यामला हिल्स पर दे दिया है । सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली के बाद भोपाल में शिफ्ट होने का मन बना बैठे हैं लेकिन सिर्फ शिफ्ट ही नहीं होना चाहते उनकी निगाहें श्यामला हिल्स के मुख्यमंत्री निवास पर भी हैं । भारतीय जनता पार्टी में कभी भी कुछ भी संभव है दूसरे दलों से आए हुए नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में भरपूर तवज्जो मिलती रही है फिर चाहे असम के मुख्यमंत्री हेमंत या फिर सोनोवाल से लेकर मणिपुर और कर्नाटक के मुख्यमंत्री ही क्यों ना हो । अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के सपने भी साकार होंगे इस बात की लालसा उनकी इन नेताओं को देखकर और बढ़ जाती है । कहने को तो कैलाश विजयवर्गीय ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दूसरे के प्रतिद्वंदी माने जाते हैं । दोनों ही एमपीसीए के चुनाव में एक दूसरे के प्रतिद्वंदी रहे हैं लेकिन अब वह नई दोस्ती से नई पारी की शुरुआत करने की कोशिश में हैं, हालांकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर तो कैलाश विजयवर्गीय की है लेकिन कहा जाता है की उनका अधिक दखल ना हो प्रदेश की राजनीति में इसीलिए उन्हें केंद्र की राजनीति में संगठन का दायित्व देकर अन्य राज्यों का प्रभारी बना दिया गया । कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर का ठाकरे भी कहा जाता रहा है और इससे पूर्व के कार्यकाल में इंदौर के सारे फैसले कैलाश विजयवर्गीय के इशारे पर ही होते रहे हैं , चाणक्य कहे जाने वाले विजयवर्गीय कभी राजनीतिक मायनों में सिंधिया को निपटाने की शपथ ले बैठे थे लेकिन अब वही विजयवर्गीय सिंधिया का साथ देते दिख रहे हैं । यही टकराव कुछ वर्षों पहले विजयवर्गीय और शिवराज के बीच था इसीलिए विजयवर्गीय को बंगाल का प्रभारी बना कर भेजा दिया था । संगठन पर पकड़ रखने वाले विजयवर्गीय के कुशल नेतृत्व से बंगाल में सत्ता के नजदीक पहुंचकर भारतीय जनता पार्टी ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया तो वहीं पहली बार हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनाने में सफल हुए ।
2018 में सीएम की कुर्सी से दूर रह गए ज्योतिरादित्य सिंधिया दिग्विजय सिंह और कमलनाथ से नाराज हो गए थे , यही कारण था कि वे कांग्रेस को अलविदा कहकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल भी हो गए । भारतीय जनता पार्टी ने न केवल सरकार बनाई बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भरपूर तवज्जो दी, पहले साथ आने वाले विधायकों को विधानसभा का टिकट देकर विधायक बनाया और मंत्री भी बनाया , इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेजकर केंद्र में नागरिक उड्डयन मंत्रालय का जिम्मा सौंपा इसके बाद इस्पात मंत्रालय भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अतिरिक्त प्रभार के रूप में सौंप दिया, इससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि सिंधिया मोदी को प्यारे हैं इसीलिए प्रदेश की राजनीति में कुछ भी बदलाव हो तो अचरज नहीं होगा । ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार प्रदेश में अपनी एक नई भूमिका की तलाश में है, इसीलिए वे दौरे पर दौरे भी कर रहे हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया की मध्य प्रदेश में बढ़ती सक्रियता को देखते हुए अन्य बड़े नेताओं की नींद भी उड़ गई है जो नेता खुद को शिवराज सिंह चौहान का विकल्प मान कर चल रहे थे । विजयवर्गीय सिंधिया की जोड़ी ना केवल मामा के लिए चुनौती है बल्कि मामा के विकल्प बनकर बैठे बड़े नेताओं के लिए भी चिंता का विषय है, हालांकि ये राजनीति है और यहाँ कयास लगाये जाते रहे हैं और लग रहे हैं बावजूद असम्भव भी कुछ नहीं है ।
( ये लेखक के अपने विचार हैं )

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