विधानसभा चुनाव : क्या लंगड़े घोड़ों पर दांव लगाएगी भाजपा ..

राजनीतिक : सूबे में चुनावी बिगुल बजने से ज्यादा दल बदल की आहट सुनाई दे रही है, जिस प्रकार 2020 में कांग्रेस के हाथ को छोड़कर भाजपा का झंडा उठाने की होड़ लगी थी ठीक वैसे ही आजकल कमल को बाय बाय कह कर कमलनाथ को नाथ बनाने के लिए हर रोज बड़े बड़े नेता भाजपा की कमर तोड़ रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी की जन आशीर्वाद यात्रा के रथ पर 20 फीट को ऊंचाई पर खड़े होकर जमीन पर खड़े आम आदमी से आशीर्वाद लेने निकल रहे हैं तो जबाव में कांग्रेस जन आक्रोश यात्रा लेकर जनता की नब्ज टटोलने निकल पड़ी है । टिकिट की मारामारी है ,और था स्थिति सभी दलों में है हालात एक अनार सौ बीमार की स्थिति बन गई है, हर एक दावेदार खुद को ही प्रत्याशी मानकर चल रहा है।
भारतीय जनता पार्टी की स्थिति सिंधिया समर्थकों के शामिल होने के बाद से मजबूत में बल्कि मजबूर हो गई है, ऐसे कई नेता हैं जिनकी राजनीति सिंधिया और उनके समर्थकों ( जो कि अब भाजपा में विधायक और मंत्री हैं ) के खिलाफ बोलने से ही थी अब हालात यह है कि उनका ही झंडा उठाकर गली गली उनकी जमीन तैयार करनी पड़ रही है। एंटी इनकंबेशी के हालात से गुजर रही भाजपा कई विधानसभाओं में अपने पुराने चेहरों पर दांव खेल सकती है और ये वो पुराने चेहरे हैं जो बीते दो तीन विधानसभा चुनावों में न केवल कांग्रेस से चुनाव हारे बल्कि तीसरे स्थान पर रहे और कुछ तो लगातार हारने वाले नाम भी हैं , इसकी बानगी घोषित हो चुके प्रत्याशियों की सूची में साफ दिखाई दे रही है लेकिन सवाल खड़ा होता है कि टक्कर में फंसे चुनाव की वैतरणी को लंगड़े घोड़े कैसे पार लगा पाएंगे , साथ ही वर्षों से अपने पसीने से पार्टी के वटवृक्ष को सींचकर इतना बढ़ा करने वाले कार्यकर्ताओं को मौका कब मिलेगा या पार्टी को उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं है लेकिन एक बात तो साफ है कि जिन लगंडे घोड़ों पर पार्टी दांव लगाने की कोशिश में है वो चुनावी रेस में जीत हासिल कराएंगे इसकी संभावना कम ही है ।

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