कांग्रेस में नहीं है आल इस वेल, अब ये नेता हाशिए पर

मध्य प्रदेश में कांग्रेस एक बार टूटी और टूटती ही चली जा रही है । एक के बाद एक नेता पार्टी से मोहभंग कर रहा है लेकिन पार्टी के प्रदेश के मुखिया कमलनाथ को इस बात की भी जरा सी भी फिक्र नहीं है कि आखिर क्या कारण है कि मेरे अपने साथी मुझसे नाराज हैं । शायद वर्चस्व की लड़ाई है जो कांग्रेस को मध्य प्रदेश की राजनीति में कमजोर बनाती जा रही है । पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पूरे कुनबे का एक साथ पार्टी छोड़ जाना ना केवल कांग्रेस के हाथ से सरकार का जाना था बल्कि कांग्रेस के भविष्य को भी खाई में धकेल गया । अब ओबीसी वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा अरुण यादव भी सिंधिया की राह पर निकल रहा है ।
मध्य प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के बीच की तनातनी सुर्खियों में बनी हुई है । खंडवा लोकसभा उपचुनाव के समय से ही दोनों नेताओं के बीच के मतभेद दिखाई दे रहे हैं लेकिन अब इस मतभेद की खाई गहरी होती जा रही है । अरुण यादव ने भी प्रदेश नेतृत्व को अपनी ताकत का एहसास कराने का फैसला किया है । अरुण यादव ने खलघाट में रैली करने का ऐलान किया है । अरुण यादव के इस ऐलान को उनके शक्ति प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा है । खास बात ये है कि खलघाट में होने वाली रैली के बारे में प्रदेश नेतृत्व से ना इजाजत ली गई है और ना अभी तक इसकी सूचना दी गई है । खलघाट की रैली के जरिए अरुण यादव प्रदेश नेतृत्व को संदेश देना चाहते हैं कि मालवा निमाड़ क्षेत्र में वहीं कांग्रेस का चेहरा हैं और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती । हालांकि अभी रैली की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि अरुण यादव के पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सुभाष यादव ने भी 23 साल पहले खलघाट में ही रैली कर अपनी ताकत का एहसास पार्टी नेतृत्व को कराया था, जिसके बाद ही उन्हें दिग्विजय सिंह की सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया था । ऐसे में अरुण यादव की इस रैली को भी बेहद अहम माना जा रहा है। अरुण यादव कांग्रेस पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाते हैं। ये बात इतनी अहम है कि मध्य प्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रभुत्व वाला राज्य है और यहां 52 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से आते हैं । साल 2000 के बाद से भाजपा के तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं । यही वजह है कि अरुण यादव के कद का नेता कांग्रेस की जरूरत है । 2013 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने अरुण यादव को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था । अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया । इसके बाद अरुण यादव को 2018 के विधानसभा चुनाव में सीएम शिवराज के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। हालांकि अरुण यादव को हार का सामना करना पड़ा।. इसका असर ये हुआ कि 2018 में कांग्रेस की सरकार तो सत्ता में आ गई लेकिन अरुण यादव एक तरह से साइडलाइन हो गए।

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