
( डॉ. सुनील अग्रवाल )
बचपन में दिवंगत गांधीवादी एस एन सुब्बाराव जी के साथ टुकड़ों टुकड़ों में मेरी जन्मस्थली जौरा में स्थापित गांधी आश्रम में सानिध्य प्राप्त हुआ है। सुब्बाराव जी से जौरा निवास पर भी मुलाकाते हुई हैं। जौरा में बालक मंदिर स्कूल की शुरुआत हुई थी तब भी वे बच्चों के बीच आकर शिक्षा दिया करते थे। वह दृश्य और वाक्या भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है। बाद में दस्यु समर्पण के बाद वे विश्व व्यापी हो गए। बचपन से मुझे विश्वास था कि उन्हें शांति का नोबल पुरस्कार अवश्य दिया जाएगा। भारत सरकार के द्वारा मरणोपरांत भी यह प्रस्ताव अग्रेषित करना चाहिए।
उनसे आखिरी मुलाकात तब हुई जब वे आदिवासियों की जमीन के आन्दोलन के लिए करीब एक लाख आदिवासियों ने पैदल दिल्ली मार्च किया और वे ग्वालियर प्रवास पर थे। उस आन्दोलन में मैंने अपनी चिकित्सकीय सेवाएं आदिवासियों के लिए मुफ्त दी थी। सुब्बाराव जी के द्वारा जौरा का नाम शीर्ष पटल पर पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मानवीयता, शांति और अहिंसा के गांधी जी के चले जाने के बाद नए आयामों को छुआ है। उन्हें अगर दूसरा गाँधी कहा जाए तो कम नहीं होगा।
ऐसी पवित्र आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि।
लेखक गजरा राजा चिकित्सा महाविद्यालय
ग्वालियर में प्रोफेसर सर्जरी विभाग हैं ।

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