
डॉ. सुनील अग्रवाल
प्रोफेसर- गजराराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर
असल भारतीय लोकतंत्र की बात की जाए तो वोट की कोई ताकत बची ही नहीं है। नागरिकों के लिए वोट देना महज एक औपचारिकता और असहाय मजबूरी है। जो सिर्फ़ एक दिन के लिए निभाई जाती है और इस एक दिन के लिए उसे जो भी झूठे सपने दिखाने में सबसे ज्यादा सफल हो जाता है नागरिक उसे उस दिन वोट दे देता है। आप कहते हो कि अच्छा इंसान चुन कर भेजो लेकिन हमें तो बुरों में से सबसे कम बुरा चुनना ही है और यह मजबूरी है। जनता सभी बुरे लोगों को नोटा के द्वारा नकार भी नही सकती है। अगर सभी लोगों ने नोटा पर वोट दे भी दिया लेकिन अगर एक व्यक्ति को एक वोट भी मिल गया तो लाखों नोटा के वोट उस एक वोट के आगे शून्य हैं यह हमारी न्यायिक और संवैधानिक व्यवस्था है।
इसके बावजूद भी हमारे द्वारा चुने जाने के उपरांत सांसद या विधायक को अपने क्षेत्र की जनता की ही आवाज उठाने तक की आजादी नहीं होती है। यहां तक कि उसे स्वयं की भी आवाज उठाने की आजादी नहीं है। ना संसद के बाहर है और ना संसद के अंदर। वास्तविकता में हमारे द्वारा चुना हुआ सांसद या विधायक अपने राजनैतिक दल के आकाओं का गुलाम है।
संसद के बाहर वह राजनैतिक दल के अनुशासन से बंधा रहने के कारण चाहते हुए भी जनता की आवाज उठाने या अपने क्षेत्र की जनता के राय के अनुसार बोल भी नहीं पाता वरना उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा या उसका राजनैतिक भविष्य समाप्त कर दिया जाएगा। यही बंदिश सांसदों को संसद के अंदर उसे अपनी पार्टी की व्हिप के अनुसार बोलने और मतदान करने पर मजबूर करती हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य और विडंबना तो यह है कि राजनैतिक दलों की व्हिप परंपरा को जो कि प्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्ति की आजादी एवं जनता की आवाज और भावनाओं के खिलाफ असंवेधानिक होते हुए भी इसे सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक करार दिया है। इस तरह से संविधान की व्याख्या होने के कारण जनता की आवाज उस एक दिन मतपत्र के साथ अगले पांच वर्ष के लिए पेटी में बंद हो जाती है और वोट देने का अधिकार नागरिकों के लिए एक दिन का झुनझुना बन कर रह गया है।
समाधान:
1. व्हिप जारी करने की परंपरा खत्म होनी चाहिए।
2. अगर नोटा के वोटों की गणना जीते हुए प्रत्याशी से अधिक है तो मतदान निरस्त होना चाहिए।
3. अगर चुना हुआ प्रतिनिधि क्षेत्र की जनता की आवाज से हटकर बात करता है या अन्य जायज कारण हों तब जनता को उसे वापस बुलाने/ वोट वापिसी ( राइट टु रिकॉल ) होना चाहिए।
ना धरम पर, ना जाति पर, ना पाती पर,
पहले अपनी खोई हुई आजादी की प्राप्ति पर वोट दें।
नोट: जो भी राजनैतिक दल उपरोक्त समाधानों को अपने घोषणा पत्र में शामिल करे उसे जनता वोट दे।

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