महाराज के आगे नतमस्तक अफसर, सामंतवाद के विरोधी भाजपाई खामोश

कहने को भले ही मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार और लेकिन ग्वालियर अंचल में सुपर सीएम तो महाराज ही है । इसके जीते जागते कई उदाहरण देखने को मिल रहे हैं पहले पुलिस महकमे के मुखिया की पोस्टिंग को लेकर कई तरह की बातें निकल कर सामने आई । बिना महाराज की पूछ परख के जब पुलिस महकमे की मुखिया की पोस्टिंग की गई तो महाराज को रास नहीं आया और अधिकारी ज्वाइन नहीं कर पाया । इसके बाद शिव की नहीं चली तो मुन्ना भैया ने अपना पांसा चला लेकिन महाराज के आगे ना तो शिव की चली ना मुन्ना की और महाराज अपना अफसर पदस्थ करने में कामयाब हो गए । इस के बाद चर्चा है कि चंबल और ग्वालियर अंचल में सिंधिया सरकार ही चल रही है ।
महाराज के आगे अफसरशाही कितनी नतमस्तक है इसका उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिला । दरअसल ग्वालियर में नगर निगम की ओर से महाराज के महल के सामने से गुजरने वाली सड़क का नाम राजपथ रख दिया गया । ना केवल नामकरण किया गया बल्कि इस नाम की पट्टिका भी नगर निगम द्वारा लगा दी गई जबकि इस के लिए नगर निगम की ओर से कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया । महाराज की चापलूसी के आगे अफसर शाही इतनी नतमस्तक हो गई कि महाराज को खुश करने के लिए उन्होंने इस सड़क का नाम राजपथ रख दिया हालांकि इसके बाद विवाद भी हुआ और कई संगठनों ने इसका विरोध भी किया। यह सड़क मार्ग पहले भी वीर सावरकर मार्ग और थीम रोड के नाम से जाना जाता है । मामला इतना गर्म आ गया लेकिन सिंधिया के धुर विरोधी मूल भाजपाई अपने घर में चुप बैठे रहे ,उन्होंने एक शब्द भी इस मामले पर नहीं बोला । ऐसे नेता जिनकी राजनीति सामंतवाद के खिलाफ बोल कर ही बढ़ी हुई हो अब ऐसे नेता खामोश रहकर अपनी राजनीतिक भविष्य को बचाने में लगे हैं । कहने वाले कहते हैं अंचल में यदि भारतीय जनता पार्टी में राजनीति का कोई पावर पॉइंट बनकर उभरा है तो वह महाराज ही हैं, इसीलिए कांग्रेस से आयातित नेता और भाजपाई अब उनसे मुखर नहीं होना चाहते क्योंकि 2023 अब दूर नहीं है और हर किसी की इच्छा विधानसभा के सहारे भोपाल की यात्रा करना है ।

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