निकायों के महापौर और अध्यक्षों के निर्वाचन में सरकार ने किया भेदभाव, व संविधान के साथ विश्वासघात है – अशोक तिवारी

मुरैना – अभी हाल ही में तीन अध्यादेशों के बाद प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है , कि प्रदेश के 16 बड़े शहरों में महापौर का चुनाव जनता करेगी तथा नगर पालिका और नगर परिषद क्षेत्रों में अध्यक्ष का निर्वाचन पार्षद करेंगे। यह कानून अध्यादेश के रूप में राज्यपाल को प्रस्तुत कर राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद आज से मध्य प्रदेश में लागू हो गया है। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व नपाध्यक्ष, माकपा नेता अशोक तिवारी के कहा है कि यह लोकतंत्र वसंविधान के साथ विश्वासघात है। सन् 1992 में 73 वां और 74 वां संविधान संशोधन कर पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय सरकारों को बनाने और मजबूत करने का निर्णय लिया गया था। मध्यप्रदेश में दिसम्बर 1999 से महापौरों, नपाध्यक्षों और नगर परिषद अध्यक्षों के चुनाव जनता द्वारा हुए हैं। पहली बार भाजपा की प्रदेश सरकार ने जनता से उसके मताधिकार के द्वारा अध्यक्षों को चुनने के अधिकार को छीना है। इससे भाजपा की अंदरूनी कलह भी सामने आई है। यह जनता के साथ विश्वासघात तो है ही साथ ही लोकतंत्र को संकुचित करने का भी सरकार का प्रयास है। जो सामने आया है। जब महापौर जनता के वोट से चुने जाएंगे। तो नपा अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष क्यों नहीं चुने जाएंगे। इससे प्रदेश की लगभग 100 नगरपालिकायें और 240 के लगभग नगर परिषदें प्रभावित होगी। जिनमें धनबल, बाहुबल और सत्ताबल का खुला दुरुपयोग किये जाने की संभावना है। यह लोकतंत्रिक मूल्यों और संविधान की भावना के प्रतिकूल है। प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों में दो तरह की चुनाव प्रणाली जनता के साथ खुला विश्वासघात है। उन्होंने सरकार के इस निर्णय की आलोचना करते हुए, प्रदेश सरकार से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। जिससे जनता के साथ न्याय हो सके और सही मायनों में जनता के मताधिकार को बचाया जा सके।

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