रावत के भाजपा में शामिल होने से कितना बदलेगा सियासी गणित
विजयपुर से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत हाल ही में भाजपा में हुए थे शामिल

संपादकीय ( वीरबल सिंह ) : कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के भाजपा में शामिल होने के साथ ग्वालियर-चंबल अंचल का चुनावी समीकरण कितना बदला है इसका आंकलन सभी राजनीतिक पंडित अपने अपने हिसाब से लगा रहे हैं, कुछ लोगों का मानना है कि माहौल बदल गया है। वहीं प्रदेश की कई सीटों पर जातीय समीकरण भी गड़बड़ा गए हैं। जानकारों का कहना है कि रावत के भाजपा में जाने से सबसे अधिक नुकसान राजगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को होगा। यानी अभी तक मजबूत स्थिति में दिख रहे दिग्गी राजा का खेल रावत बिगाड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक रामनिवास रावत भाजपा में शामिल होते ही कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला बोल दिया है। वहीं रामनिवास के पार्टी बदलने से ग्वालियर चंबल की सीटों पर जातीय समीकरण बदल गए हैं। रामनिवास का पार्टी छोडना कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि रामनिवास रावत के भाजपा में शामिल होने की अटकलें पिछले एक हफ्ते से चल रही थीं। पूर्व में जब रावत के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हुईं, तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चर्चा कर रोकने के कोशिश की। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विभय सिंह ने भी रावत को अपने चुनाव क्षेत्र राजगढ़ में बुलाकर सभाएं करवा डालीं। लेकिन कांग्रेस पार्टी रावत को रोकने में सफल नहीं हो पाई। वे आखिरकार भाजपा में शामिल हो गए हैं।
कैसे और कितना बदलेगा सियासी गणित
रामनिवास रावत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जरूर हैं लेकिन कद्दावर नेता नहीं , कांग्रेस पार्टी ने रावत को 8 बार मौका दिया जिसमें से वे 6 बार जीत हासिल कर चुके हैं। रामनिवास रावत की जीत का सबसे बड़ा कारण विजयपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का मजबूत कैंडिडेट का नहीं होना था , पार्टी के ही नेता बाबूलाल मेवरा ने उन्हें शिकस्त दी थी और उसके बाद जब बाबूलाल मेवरा चुनाव हार गए तो पार्टी ने क्षेत्र में आदिवासी वोट बैंक को देखते हुए सीताराम आदिवासी को टिकिट दिया ताकि प्रदेश भर में आदिवासी वोट बैंक को साधा जा सके और इसका नुकसान पार्टी को लगातार हार से हुआ , आखिरकार तीसरी बार जब सीताराम आदिवासी लंबे समय तक भाजपा की सरकार होने के बाद जीते भी तो कम वोटों के अंतर से, एक बार तो रामनिवास रावत को जीत इसलिए भी मिली क्योंकि भाजपा के बाबूजी ने हाथी की सवारी कर ली थी और इस बार भी यही हुआ कि निर्दलीय प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा ने निर्दलीय ताल ठोककर सीताराम का सियासी गणित खराब कर दिया था क्योंकि निर्दलीय को 43 हजार वोट मिले थे । एक बात तो साफ है कि रावत की जीत का कारण भाजपा का कमजोर होना या निर्दलीय उम्मीदवार का चुनावी मैदान में उतर जाना रहा है। रामनिवास रावत को पार्टी ने लोकसभा में भी मौका दिया लेकिन रावत लाखों वोटों से चुनाव हार गए।
नहीं उभरने दिया किसी और को
रावत के बारे में मिथक है कि उन्होंने सदैव ही विजयपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी में किसी और नेता को उभरने का मौका नहीं दिया, जनपद से लेकर जिला पंचायत तक और संगठन में सदैव अपने परिवार को स्थापित करने की कोशिश की लिहाजा लोग नाराज होते गए । भाजपा से बसपा में गए बाबूलाल को रामनिवास रावत ने कांग्रेस से हाथ मिलवा दिया लेकिन चुनाव से पूर्व बाबूजी नरेंद्र सिंह तोमर के कहने और टिकिट के भरोसे भाजपाई हो गए और निर्दलीय प्रत्याशी की वजह से चुनाव हार गए । बताया जाता है कि स्थानीय नेता जिला पंचायत सदस्य परीक्षत धाकड़ रामनिवास रावत के कर्मठ कार्यकर्ता हुआ करते थे लेकिन परीक्षत की बढ़ती लोकप्रियता को रावत हजम नहीं कर पा रहे थे इसलिए सदैव उनको उपेक्षित रखा नतीजन परिक्षत ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। रावत की परिवारवाद की राजनीति से क्षेत्र में कई समाज नाराज थे। रावत भाजपा की कमजोरी और भीतरघात से चुनाव जीतते रहे, इतनी लोकप्रियता नहीं कि कोई रिकॉर्ड तोड मतों से विजय हासिल की हो ।
बदलना चाहते थे विधानसभा क्षेत्र
विजयपुर में रामनिवास रावत को आशंका थी कि उनके प्रति एंटी इनकंबेशी है और उनकी चुनावी यात्रा आसान नहीं है इसलिए वे जातिगत वोट के आधार पर पड़ोसी विधानसभा सबलगढ़ जाना चाहते थे और इस बात को उन्होंने भाजपा के मंच से भी स्वीकार किया । सियासी पंडितों का कहना है कि रावत के भाजपा में आने से उनके समाज का वोट बैंक भाजपा को लाभ पहुंचाएगा लेकिन सच तो ये है कि रावत समाज के बीच भाजपा से रणवीर रावत जैसे लोकप्रिय नेता पहले से मौजूद हैं और तो और जिस क्षेत्र से रावत आते हैं वहीं पास से सरला रावत भाजपा की विधायक हैं और इस परिवार को भाजपा ने 10 बार मौका दिया ऐसे में भाजपा के लिए रावत समाज से पहले से नेता थे इसलिए रामनिवास रावत समाज के वोट बैंक का ध्रुवीकरण कर पाएंगे इसकी गुंजाइश कम है, इसके अलावा 8 बार कांग्रेस ने मौका दिया,प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाया उस व्यक्ति की पार्टी ने उपेक्षा की होगी ये भी समझ से परे हैं, चुनावी मौसम में पाला बदलना रावत के निजी स्वार्थ को दर्शाता है।

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