उफ्फ ! ग्वालियर बना फिसड्डी, फिसला दो कदम पीछे

ग्वालियर : ग्वालियर शहर के विकास की चिंता करने वाला कोई जनप्रतिनिधि नहीं है तो वहीं ग्वालियर शहर जो कि अपने आप मे एक लंबा इतिहास समेटे हुए है, की देखभाल करने वाला प्रशासन नहीं है और यदि बात नगर निगम ग्वालियर की करें तो बस क्या कहने । शहर में लोग गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं तो सड़क,चैराहों पर लगे कचरे के ढेर के बगल से नाक बंद करके निकल पाना भी मुश्किल है । शहर की स्वच्छता अभियान की बाट लगाने वाले तत्कालीन नगर निगम आयुक्त को प्रदेश के मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में हटा तो दिया लेकिन नवागत आयुक्त इस मुद्दे को लेकर कितने संवेदनशील है इस बात से पता चल रहा है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में हमारा हैरिटेज ग्वालियर दो कदम पीछे चला गया।
दरअसल दिल्ली में स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणाम जारी हो गए हैं। 10 लाख से अधिक की आबादी वाले शहरों में ग्वालियर की स्वच्छता रैंक 15वीं रही है। बीते वर्ष की तुलना में शहर 2 पायदान नीचे खिसक गया है। बीते वर्ष शहर की रैंक 13वीं थी। इससे शहर वासियों की उम्मीद को गहरा झटका लगा है। सिर्फ गार्वेज फ्री सिटी से ही शहर को संतोष करना पड़ेगा। इतना ही नहीं पूरे देश में कुल शहरों में ग्वालियर 42वें नंबर पर रहा है, जबकि बीते वर्ष 28वीं रैंक पर थे।शनिवार को दिल्ली में ग्वालियर नगर निगम को गार्वेज फ्री सिटी का तमगा जरूर मिल गया है। अवार्ड लेने के लिए नगर निगम आयुक्त किशोर कान्याल, अपर आयुक्त संजय मेहता एवं स्वच्छता के नोडल अधिकारी श्रीकांत काटे दिल्ली में ही हैं।
क्यों पिछड़ा शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में , लगातार पिछड़ने का मुख्य कारण यह है कि ग्वालियर में साल भर स्वच्छता को लेकर प्रयास नहीं किए जाते हैं। जब सर्वे शुरू होने वाला होता है, इसके पहले नगर निगम के अफसर शहर में सफाई कार्य पर फोकस करना शुरू करते हैं। ऐसे में टीम जब सर्वे के लिए आती है तो पूरी हकीकत सामने खुल जाती है, जबकि इंदौर एवं अन्य शहरों में साल भर सफाई पर फोकस करने के साथ ही लगातार नवाचार भी किया जाता है।

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