आखिर ओबीसी को क्यों साध नहीं पा रहे राजनीतिक दल

जैसे जैसे समय अपनी करवट लेता जा रहा है ठीक वैसे ही सूबे और देश की राजनीति का परिदृश्य भी बदलता जा रहा है । जन सेवा के लिए नहीं खुद के निर्वाह के लिए लोग राजनीतिक को पेशा बना रहे हैं । इसके अलावा राजनीति के मायने पूरी तरह बदल गए हैं । अब विकास की राजनीति को धर्म, जाति, वर्ग विशेष की राजनीति के पैरों तले कुचल दिया जा रहा है । राजनीति में शुचिता नाम की कोई चीज बची ही नहीं है । राजनीति का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है । नेताओं और राजनीतिक दलों ने अपना जमीर बेच कर रख दिया । सौदेबाजी करके सत्ता हथियाना अब राजनीति का मुख्य उद्देश्य बन गया है । अपने आदर्श और विचारधारा को गिरवी रखकर कई राजनेता सत्ता के लोभ, लालच में कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठे हैं।
2023 का विधानसभा चुनाव नजदीक है लेकिन मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को साधना भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के लिए मुसीबत बना हुआ है । आए दिन जिला मुख्यालय पर ओबीसी महासभा के पदाधिकारियों द्वारा ओबीसी आरक्षण को लेकर और तमाम विसंगतियों के अलावा ओबीसी के आम आदमी पर हो रहे अत्याचार के विरोध में ज्ञापन सौंपा जा रहे हैं तो वहीं कई जिलों में उग्र आंदोलन भी हो रहे हैं । भारतीय जनता पार्टी प्रशासन की लाठी से इन आंदोलनों को कुचलने का काम कर रही है लेकिन जितना कुचलने का प्रयास किया जा रहा है उससे कहीं अधिक ओबीसी की क्रांतिकारी युवा संगठित होते जा रहे हैं। यही दृश्य अगर चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब ओबीसी महासभा 2023 के विधानसभा चुनाव में चुनावी रण में दिखाई देगी और न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें खड़ी करने वाला भविष्य तैयार करेगी । भारतीय जनता पार्टी ओबीसी को किनारे कर अब दलित वोट बैंक की राजनीति की सोशल इंजीनियरिंग पर कार्य कर रही है और वह दलित महापुरुषों को, नेताओं को याद करके उनके लिए कई जन कल्याणकारी योजनाओं बनाकर दलितों को साधने का प्रयास तो कर रही है लेकिन दलित वोट बैंक भाजपा के झांसे में आएगा यह कहना थोड़ा मुश्किल ही लगता है ।

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