पोहरी के तत्कालीन सिंधियाई नेता अब हुए भाजपाई

विशेष खबर : राजनीति कब और किस करवट बैठेगा इसका आंकलन तो राजनीति के जानकार लगा लेते हैं लेकिन कौन सा नेता किस दल के प्रति निष्ठावान है और कब तक रहेगा इसका अंदाजा लगाना राजनीतिक पंडितों के अनुमान से बाहर होता है । शाम को जिस दल को और उस दल के नेताओं को पानी पी पी कर कोसते हुए सोए होते हैं सुबह उसी दल की अच्छाईयां गिनाते हुए रंग ,ढंग और बोल बदलते दिखाई देते हैं । 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामते वक्त कई नेता भाजपाई हो गए थे । बात शिवपुरी जिले की पोहरी विधानसभा की करें तो सबसे बड़ा नाम स्थानीय विधायक सुरेश धाकड़ का था , सुरेश धाकड़ ने तत्कालीन समय में विधायक पद से इस्तीफा भी दिया था और उपचुनाव में न केवल भारतीय जनता पार्टी के टिकिट पर चुनाव लड़े बल्कि दल बदलने का इनाम शिवराज सरकार में पीडब्ल्यूडी राज्यमंत्री के रूप में मिला। उस समय के कई सिंधिया समर्थक नेता सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए ,शायद उन्हें अपना भविष्य कांग्रेस में बेहतर दिखाई दे रहा था लेकिन समय के साथ धीरे धीरे अधिकतर नेता अब भाजपाई हो गए हैं जिनमे शिवपुरी और कोलारस क्षेत्र के भी कई बड़े नेता शामिल हैं।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र से सिंधिया समर्थक माने जाने वाले पूर्व जनपद अध्यक्ष पारम सिंह रावत सिंधिया के साथ भाजपा में नहीं गए बल्कि उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पोहरी विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतर गए थे और अब वे भाजपा में शामिल हो गए हैं। पूर्व जनपद उपाध्यक्ष पोहरी अरविंद चकराना सिंधिया के साथ भाजपा में गए जरूर लेकिन कमलनाथ के हाथों एक बार फिर घर वापिसी हो गई, पोहरी जनपद अध्यक्ष रहे प्रद्युम्न वर्मा भी सिंधिया समर्थक माने जाते हैं लेकिन कांग्रेस का हाथ थामे रहे लेकिन विधानसभा चुनाव में टिकिट न मिलने से नाराज प्रद्युम्न वर्मा ने हाथी की सवारी कर सिंधिया समर्थक सुरेश धाकड़ के सामने चुनावी मैदान में ताल ठोक दी नतीजन प्रद्युम्न वर्मा और सुरेश धाकड़ दोनों ही चुनाव हार गए और कांग्रेस की जीत हुई और प्रद्युम्न वर्मा अब सिंधिया के हाथों भाजपाई हो गए हैं। एडवोकेट अरविंद धाकड़ दुल्हारा कट्टर सिंधिया समर्थक माने जाते हैं और अरविंद के पिता लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे ,बावजूद इसके अरविंद कांग्रेस में ही बने रहे लेकिन बीते दिनों उन्होंने भी भाजपा का दामन थाम लिया , सीधे तौर पर देखा जाए तो तत्कालीन सिंधियाई नेता अब भाजपाई होते जा रहे हैं, बजह जो भी हो लेकिन कांग्रेस का कुनबा घटता ही जा रहा है, यह कोई नई परंपरा नहीं है सता के साथ जुड़ाव स्वाभाविक है और हो भी यही रहा है लेकिन सवाल उठ खड़ा होता है कि जो नेता कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं देख रहे उन नेताओं को बढ़ती भीड़ में भाजपा में क्या हासिल होगा ।

Subscribe to my channel



