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पथरीली जमीन से मेडिकल कॉलेज के डीन तक की यात्रा का नाम है डॉ. धाकड़

कोरोना जैसी महामारी में कुशल प्रशासक साबित हुए और अधीक्षक रहते प्राप्त की कई उपलब्धियां

ग्वालियर : “होनहार बिरवान के होत चीकने पात” यह कहावत पूरी तरह से डॉ रामकिशन सिंह धाकड़ जी पर चरितार्थ होती हैं जिन्हे हम सब डॉ. आर. के. एस. धाकड़ के नाम से जानते हैं। डॉ धाकड़ को गजराराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर में डीन बनाया गया है। आपको बता दें कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में जयारोग्य अस्पताल समूह ग्वालियर के संयुक्त संचालक एवं अधीक्षक डॉ. आर. के. एस. धाकड़ को जीआरएमसी ग्वालियर का अधिष्ठाता बनाया गया है। जयारोग्य अस्पताल समूह में सबसे लंबे समय तक अधीक्षक पद पर पदस्थ रहने का रिकॉर्ड भी डॉ. आर. के. एस. धाकड़ के नाम है, वे पिछले चार वर्ष से इस पद पर कार्यरत हैं और कोरोना जैसी स्थिति में डॉ धाकड़ के कुशल प्रबंधन और प्रशासकीय देखरेख से किसी भी प्रकार की जनहानि नहीं होने दी । हाल ही में आभा नंबर और क्यूआर कोड से ओपीडी में रजिस्ट्रेशन करने के मामले में जीआरएमसी ने छलांग लगाते हुए देश में छटवे और प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त करने का कीर्तिमान बनाया है और यह सब संभव हुआ है डॉ. आर. के. एस. धाकड़ के कुशल प्रबंधन से । लगातार मॉनिटरिंग कर अस्पताल की व्यवस्थाओं में सुधार लाना, प्रत्येक विभाग की जनसुनवाई सुनिश्चित करना और बेहतर से बेहतर सुविधाओं को स्थानीय जनप्रतिनियों और प्रशासन से समन्वय स्थापित कर कैसे जयारोग्य अस्पताल में लाया जा सके इसके लिए लगातार प्रयास किए।

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होनहार बिरवान के होत चीकने पात” इसलिए चरितार्थ होती है क्योंकि डॉ आर. के. एस. धाकड़ का जन्म मुरैना जिले की जौरा तहसील के अंतिम छोर पर बसे एक छोटे से गांव खोरा में हुआ था, बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रामकिशन सिंह को देखकर घर परिवार और गांव के लोगों को लगता था कि एक दिन यह गांव का नाम रोशन करेगा और यह सत्य साबित हुआ । कर्मठ और कर्म को ही भाग्य मान लेने वाले डॉ आर. के. एस. धाकड़ ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा, एक ऐसा गांव जहां न तो स्कूल था और न ही गांव तक पहुंचने के लिए सड़क और बिजली की तो कल्पना करना भी बेईमानी थी । पढ़ाई के साथ माता पिता और बड़े भाइयों के साथ खेती में हाथ बंटाने वाले धाकड़ ने कही संसाधनों की कमी का रोना नहीं रोया, अभावों की बेड़ियां उनके कदमों को रोक नहीं पाई । उक्त कहावत तो उसी दिन सच साबित हो चुकी थी जिस दिन डॉ धाकड़ ने संघर्षों को मेहनत के पैरों तले कुचलकर जीआरएमसी ग्वालियर में एमबीबीएस में दाखिला ले लिया था । जीआरएमसी से एमबीबीएस , श्यामशाह मेडिकल कॉलेज रीवा से एमएस ऑर्थोपेडिक करने वाले धाकड़ ने विदेशों में भी अपनी चिकित्सा ज्ञान का झंडा बुलंद किया है। किसान परिवार की पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ आर. के. एस. धाकड़ ने जिस पद पर काम किया तो पूरी लगन ,मेहनत और कर्मठता के साथ किया , सदैव सच के लिए लड़ते रहे हैं तो आमजन को कैसे बेहतर चिकित्सा सेवाएं प्रदान की जाएं इसका प्रयास किया। अधीक्षक रहते हुए अस्पताल में कई नवाचार किए, कोरोना में जब अपने ही अपनों से मिलने में हिचकिचा रहे थे तब डॉ आर. के. एस. धाकड़ परिवार और स्वयं की चिंता छोड़ रात और दिन आमजन की सेवा में लगे रहे। कर्म को भाग्य मानने वाले डॉ आर. के. एस. धाकड़ के कर्म ने भाग्य में जीआरएमसी ग्वालियर का डीन दिया है जिसके वे हकदार हैं, निश्चित रूप से उनके कुशल प्रशासकीय देखरेख में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल एक अलग ही पहचान स्थापित करेगा ।

बधाई एवं शुभकामनाएं!

Chief Editor JKA

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