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राजनीतिराज्य

बिहार चुनाव में हिट रहे नीतीश कुमार के 5 पैंतरे, 15 साल बाद फिर सबसे पावरफुल

बिहार के चुनावी रूझान में नीतीश कुमार जबरदस्त वापसी करते दिख रहे हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक 2020 में 43 सीट जीतने वाली नीतीश कुमार की जेडीयू इस बार 70 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. नालंदा, मुंगेर और सुपौल जैसे जिले में जेडीयू क्लीन स्विप करती नजर आ रही है. एनडीए गठबंधन के तहत नीतीश कुमार की पार्टी 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.

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इस जबरदस्त वापसी के साथ नीतीश कुमार ने 15 साल बाद फिर बड़ी वापसी की है. 2010 में नीतीश कुमार की पार्टी को 116 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद 2015 के चुनाव में वे 72 सीटों पर सिमट गए थे. 2020 में उनकी पार्टी बिहार की तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी.

 

नीतीश की वापसी क्यों, 5 असली कारण

1. चुनाव से पहले महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार को बीमार बता रहे थे. खुद तेजस्वी यादव इसको लेकर लगातार बयान दे रहे थे. नीतीश इस पर बोले तो कुछ नहीं, लेकिन अपनी एक्टिविटी से इसका करारा जवाब दिया. नीतीश चुनाव से तुरंत पहले एक्टिव हो गए.

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जेडीयू के भीतर उन्होंने सीट शेयरिंग से लेकर टिकट बंटवारे तक में अहम भूमिका निभाई. नीतीश के दखल की वजह से ही लोजपा (आर) को नालंदा में एक भी सीट नहीं मिली. नीतीश ने टिकट और सीट बंटवारे में दखल देकर यह बता दिया कि टाइगर अभी जिंदा है.

 

2. नीतीश कुमार को सोशल इंजीनियर का मास्टर कहा जाता है. जाति और जेंडर के लिहाज से वोट जोड़ने में वे माहिर माने जाते हैं. चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपने वोटबैंक को जोड़ने की कवायद शुरू कर दी. इसी कड़ी में उन्होंने पहले महिलाओं को साधा और फिर अपने लव-कुश और महादलित समीकरण को.

 

चुनाव आते-आते नीतीश अपनी योजना के बदौलत एंटी इनकंबेंसी खत्म करने में भी सफल रहे. नीतीश ने पूरे चुनाव में अकेले 81 रैलियां की. 4 से ज्यादा रोड शो किए.

 

3. नीतीश कुमार ने जोन बांटकर अपने नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी. मसलन, कोशी-सीमांचल की जिम्मेदारी विजेंद्र यादव को दी. मिथिलांचल का जिम्मा संजय झा को मिला. ललन सिंह को पटना, मुंगेर और बांका की कमान मिली. इसी तरह मनीष वर्मा नालंदा की तरफ एक्टिव रहे.

 

नीतीश ने अपनी सीट बढ़ाने के लिए पुराने दिग्गजों को भी मैदान में उतारा. इनमें दुलाल चंद्र गोस्वामी, चंद्रेश चंद्रवंशी और महाबली सिंह का नाम प्रमुख हैं. तीनों ही अपने सीट पर बढ़त बनाए हुए हैं.

 

4. नीतीश कुमार पिछली बार की तुलना में अपने भाषणों में ज्यादा मुखर नहीं रहे. इस बार उन्होंने सिर्फ काम का ही जिक्र किया. पिछली बार उन्होंने कई रैलियों में लालू परिवार पर व्यक्तिगत निशाना साधते नजर आए थे. इस बार वे सिर्फ 20 साल के काम का वोट मांगते नजर आए.

 

आरजेडी भी नीतीश पर ज्यादा हमलावर नहीं थी. उलटे आरजेडी और कांग्रेस के नेता घूम घूम कर यह कह रहे थे कि बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी. नीतीश को इसका भी फायदा मिल गया.

 

5. नीतीश कुमार मुसलमानों को भी साधने में पीछे नहीं रहे. उन्होंने इस चुनाव में 4 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव आयोग के रूझान के मुताबिक 4 में से 3 उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए है. पिछली बार जेडीयू सिंबल पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर पाए थे.

Chief Editor JKA

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